क्या अस्तित्व है मेरा? - by Pinki Khandelwal
समाज की बंदिशों से अलग,
परिवार के सदस्यों में,
मेरा भी कोई हक है,
क्या मुझे भी,
बोलने की आजादी है,
कभी समझ नहीं आया,
जब कभी भी अपनी बात,
रखती,
तो समाज के लोग मुझे,
मेरी जगह घर की चारदीवारी,
बता देते,
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जब कभी बस्ता उठाती,
मां बेलन थमा देती,
जब कुछ ख्वाहिशे करूं,
तो क्या जरूरत है,
यह कहकर चुप करा देती,
कहां है मेरा अस्तित्व,
क्या आजादी मिली मुझे,
कोई जगह है मेरी,
बचपन से सुना बेटी के दो घर होते हैं,
क्या सच में?
जब अपने घर में मेरी,
कोई पहचान भी है,
ये नहीं पता मुझे,
तो वो घर में मेरी,
कोई जगह है,
कैसे कह दूं मैं?
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