भारतीय संस्कृति - by Dr. Bhagwan Sahay Meena



भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन संस्कृति है। यह अन्य संस्कृतियों से अनूठी और भिन्न है। भारत की भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक परिस्थितियां अन्य देशों से भिन्न है, यहां की संस्कृति में धर्म , दर्शन, अध्यात्म, साहित्य एवं ललित कलाओं के विद्यमान तत्व इसे विशेष बना देते हैं।

भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं-
 
1.प्राचीनता :-

 विश्व में यूनान , मिश्र, सुमेर और रोम आदि स्थानों पर संस्कृतियों का उदय हुआ किन्तु समय के साथ अवशेष मात्र ही शेष है जबकि लगभग पांच हजार साल पहले विकसित भारतीय संस्कृति आज भी पूर्ण रूप से उपस्थित हैं। अतः भारतीय संस्कृति विश्व की समस्त संस्कृतियों में प्राचीन संस्कृति है।

2. सहिष्णुता एवं उदारता:-

विश्व के अधिकांश देशों में धर्म के नाम पर युद्ध लड़े गए किन्तु भारत में सभी धर्मों के प्रति सम्मान का भाव रखा गया। सहिष्णुता और उदारता रखी गई।

3. नैतिकता :-

भारतीय संस्कृति में नैतिकता एवं सदाचार का स्थान हमेशा से ही सर्वोपरि रहा है। त्याग,तप, संयम, अहिंसा, सहनशीलता, बड़ों का आदर करना, शिष्टाचार आदि सब नैतिकता के ही मार्ग है।

4. अहिंसा :-

अहिंसा भारतीय संस्कृति का सनातन गुण है। जीव मात्र के प्रति दया और प्रेम की भावना ही  अहिंसा के पोषक तत्व है।

5. समन्वयवादी :-

भारतीय संस्कृति में समन्वय के गुण स्पष्ट दर्शित होते हैं। कर्म और भाग्य, निवृत्ति और प्रवृत्ति, भोग और वैराग्य, आध्यात्मिकता और भौतिकता का समन्वय ही भारतीय संस्कृति का मूल आधार है।

6. अनेकता में एकता :-

अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता है, भारतीय संस्कृति में भौगोलिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्रों में विभिन्नता के साथ ही अखण्ड मौलिक एकता भी मौजूद है। यहां विभिन्न जातियों और धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं किन्तु उनमें मनोवृत्तियों और भावनाओं की एकता विद्यमान है।

7. नारी सम्मान :-

 भारतीय संस्कृति में नारी को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। उसके जीवन की सार्थकता उसके मातृत्व में स्वीकार की गई है। वैदिक काल से ही नारी को सशक्त और सर्वोपरि माना गया है। मैत्रेयी, गार्गी,अपाला , कुन्ती आदि अनेक नारी इस बात की पुष्टि है कि भारतीय संस्कृति में सदा से ही नारी को सम्मान दिया गया है।

8. धर्म प्रदान और दर्शन प्रधान :- 

आत्मा और परमात्मा के विषय में जितना भारतीय विचारकों ने मनन किया है सम्भवतः उतना अन्य किसी ने नहीं किया है। भारतीय संस्कृति आरंभ से ही एक आध्यात्मिक और दार्शनिक संस्कृति रही है। यहां धर्म और दर्शन को साथ लेकर चलने वाली विचार धारा रही है । इसी ज्ञान के कारण भारत विश्व गुरु कहलाता है।

9. अवतारवाद और देववाद :-

भारतीय संस्कृति में अवतारवाद की रोचक कल्पना रही है । यह मान्यता है कि जब - जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ा तथा धर्म की हानि हुई है तब - तब  अधर्म के विनाश हेतु ईश्वर ने अवतार लिया है। राम, कृष्ण, वामन आदि दस अवतार माने गए हैं। भारतीय संस्कृति में देवताओं को भी महत्वपूर्ण माना गया है। वैदिक युग  विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों को देश रूप में माना गया जैसे अग्नि , वायु,वरुण, इन्द्र, उषा आदि। भारतीय संस्कृति में ब्रह्मा, विष्णु, महेश को क्रमशः सृष्टा, पालक और संहारक माना गया है।

वर्ण व्यवस्था :-

वर्ण शब्द का अर्थ अत्यंत ही व्यापक है। इस के शाब्दिक अर्थ को अनेक प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है। प्रथम विचारधारा के अनुसार 'वर्ण' का अर्थ है वरण करना अथवा धारण करना या चुनाव । इस तरह कहा जा सकता है कि आरंभ में जो व्यक्ति जिस व्यवसाय को चुनते थे वे उसी वर्ण के माने जाते थे। द्वितीय विचारधारा के अनुसार 'वर्ण' का अर्थ व्यक्ति की वृत्ति से था, जैसे एक ही प्रकार के स्वभाव वाले व्यक्ति  एक वर्ण में माने गए। 

आश्रम व्यवस्था :-

 पुरातन काल से ही आश्रम व्यवस्था भारतीय समाज की आधारशिला रहा है। 'आश्रम' शब्द 'श्रम' धातु से बना है, जिसका अर्थ है परिश्रम करना अथवा प्रयास करना अतः कहा जा सकता है कि आश्रम का अर्थ जीवन के उन विभिन्न स्तरों से है जहां व्यक्ति को अनेक प्रकार का श्रम अथवा प्रयास करना होता है। आश्रम व्यवस्था भारतीय मनीषियों द्वारा निर्धारित एक ऐसी व्यवस्था है जो भारतीय मानव को प्राणन्वित करते हूएं इस भवसागर में आगे बढ़ने की क्षमता प्रदान करती है। प्राचीन काल में मनुष्य की आयु सौ वर्ष मानी गई और इस आयु को चार भागों में बांटा गया। प्रत्येक आश्रम की अवधि 25 वर्ष मानी गई है। आश्रम व्यवस्था महिलाओं के लिए लागू नहीं थी। यह आश्रम है -

1. ब्रह्मचर्य आश्रम :-

आश्रम व्यवस्था का यह प्रथम आश्रम है । इस आश्रम में रहते हुए बालक ज्ञानार्जन करते हुए अपना मानसिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक विकास करता था। इस आश्रम का प्रारंभ उपनयन एवं वेदारंभ संस्कारों से होता था,ब्रह्मचर्य आश्रम से तात्पर्य जीवन के उस संयंत्र से है जिसमें महानता प्राप्त करने के मार्ग पर चला जाये । इस आश्रम में अनुशासन, पवित्रता, नैतिकता, सेवाभाव,आचरण की शुद्धता को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। इस आश्रम में बालक संसार के प्रलोभनों से दूर, आमोद - प्रमोद विरक्त , शुद्धता पूर्वक  जीवन व्यतीत करते हुए अपने आचार्य की छत्रछाया में शिक्षा ग्रहण करता था। इस आश्रम का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थी को स्वाव - लम्बी बनाना और गृहस्थ आश्रम के लिए तैयार करना था।

2.गृहस्थ आश्रम :-

आश्रम व्यवस्था का यह दूसरा आश्रम है। इस आश्रम में व्यक्ति गृहस्थ होकर अपने जीवन को व्यतीत  करता है। इस आश्रम को चारों आश्रमों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। वास्तव में यह अन्य आश्रमों का मुख्य आधार है। इस आश्रम में दो कार्य प्रमुखता से किए जाते हैं। एक तो चार में से तीन पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम की पूर्ति एवं दूसरा ऋणों से मुक्त होना। यह ऋण है - देव ऋण, ऋषि ऋण,पितृ ऋण, अतिथि ऋण, भूत ऋण।

 3.वानप्रस्थ आश्रम :-

वानप्रस्थ का अर्थ है वन की ओर प्रस्थान करना। शास्त्रकारों के अनुसार आयु के 50 वर्ष पूर्ण कर इस आश्रम में प्रवेश करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि जब गृहस्थ जीवन का काल एवं कृर्तव्य पूर्ण हो जाएं सन्तान के भी सन्तान हो जाए, वृद्धावस्था का आरंभ हो जाएं तो मनुष्य को इस आश्रम में प्रवेश करना चाहिए। इस आश्रम में मनुष्य को मोह, माया बंधन को त्यागकर पवित्र और सेवायुक्त जीवन व्यतीत करना होता है। इस आश्रम का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना होता था।

4. संन्यास आश्रम :-

 संन्यास आश्रम चार आश्रमों में अन्तिम आश्रम है। जब वानप्रस्थी मनुष्य स्वयं को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेता था,तब वह लगभग 75 वर्ष की आयु में इस आश्रम में प्रवेश करता था। इस आश्रम में मनुष्य समस्त वस्तुओं का त्याग कर भ्रमणशील जीवन व्यतीत करता है। उसके द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य समाज कल्याण की भावना से युक्त होता है। इस आश्रम की अवधि मृत्युपर्यंत होती थी। इस आश्रम में मनुष्य मोक्ष प्राप्ति हेतु कार्य करता है ।

संस्कार :-

भारतीय संस्कृति में संस्कारों की संख्या- 16  मानी गई है। संस्कारों का प्रथम उल्लेख 'वृहदारण्यकोपनिषद' में प्राप्त होता है।  संस्कार शब्द का अर्थ है - पूर्ण करना, शुद्धी, आत्म सृजन का गुण, परिमार्जित करना। संस्कार है - 1.गर्भधान 2.पुंसवन 3.सीमन्तोन्नयन 4.जातकर्म 5.नामकरण 6.निष्क्रमण 7.अन्नप्राशन 8.चूड़ाकर्म 9.कर्णवेध10.विद्यारंभ 11.उपनयन 12.वेदारम्भ 13.केशान्त/गोदन 14.समावर्तन 15.विवाह 16.अन्त्येष्टि ।

1.गर्भधान संस्कार :-

एक पुरुष जिस क्रिया के द्वारा स्त्री में अपना वीर्य स्थापित करता है उसे गर्भधान संस्कार कहते हैं। इस संस्कार की परिभाषा शौनक मुनि ने इस प्रकार दिया है - " जिस कर्म की पूर्ति से स्त्री प्रदत्त शुक्र धारण करती है उसे गर्भधान कहते हैं।" इस संस्कार के समय पुरुष की आयु 25 वर्ष और स्त्री की आयु 16 वर्ष होना आवश्यक मानी गई है। इस संस्कार में रात्रि और नक्षत्र का ध्यान रखना आवश्यक था । स्त्री के ऋजुकाल की चौथी रात्रि से लेकर सोलहवीं रात्रि तक का समय गर्भधान संस्कार के लिए उपयुक्त माना जाता था। यह संस्कार श्रेष्ठ संतानोत्पत्ति हेतु किया जाता था।

2.पुंसवन संस्कार :-

 स्त्री द्वारा गर्भधारण 
करने के तीसरे,चौथे अथवा आठवें माह में पुत्र प्राप्ति हेतु यह संस्कार किया जाता था।

3. सीमांतोन्नयन संस्कार :-

यह संस्कार गर्भवती महिला के गर्भ की रक्षा के लिए किया जाता था। 

4. जातकर्म संस्कार :-

शिशु जन्म के पश्चात इस संस्कार में पिता नवजात शिशु को अपनी अंगुली से शहद या घृत चटाता था । यह शिशु की दीर्घायु के लिए किया जाता था।

5.नामकरण संस्कार :-

 यह संस्कार शिशु का नाम रखने हेतु किया जाता था।

6.निष्क्रमण संस्कार :- 

शिशु को पहली बार घर से बाहर निकालने पर जन्म के 12वें दिन से लेकर  चौथे माह तक यह संस्कार किया जाता था।

7.अन्नप्राशन संस्कार :-

शिशु को छठें माह में ठोस अन्न खिलाने के लिए यह संस्कार किया जाता था।

8.चूड़ाकर्म संस्कार :-

 इस संस्कार को मुंडन अथवा चोल संस्कार के नाम से भी जानते हैं। इस में शिशु के चोटी छोड़ कर सारे बाल काट दिए जाते हैं। 

9.कर्णवेध संस्कार :-

रोगादि से बचने तथा आभूषण धारण करने के उद्देश्य से यह संस्कार किया जाता था।

10. विद्यारंभ संस्कार :-

बालक के जन्म के 5वें वर्ष में , बालक को गुरु के पास ले जाकर अक्षर ज्ञान कराया जाता था । यहां से बालक की शिक्षा शुरू हो जाती थी।

11.उपनयन संस्कार :-

इस संस्कार से बालक की विधिवत शिक्षा गुरुकुल में प्रारंभ हो जाती थी । इसमें बालक को यज्ञोपवीत धारण कराकर ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश करवाया जाता था।

12.वेदारंभ संस्कार :-

 इस में शिक्षा के साथ - साथ गुरु कुल में वेदों का अध्ययन करवाया जाता था।

13.केशान्त/गौदान संस्कार :- 

जब बालक 16वर्ष का हो जाता था तब पहली बार उसके  दाढी- मूंछों को मूंडा जाता था।

14.समावर्तन संस्कार :-

 समावर्तन का अर्थ है लौटना । गुरू कुल में शिक्षा पूर्ण कर बालक घर लौटता था। यह गृहस्थ आश्रम का सूचक था।

15.विवाह संस्कार :-

यह संस्कार सबसे महत्वपूर्ण माना गया है । इस संस्कार में स्त्री पुरुष अग्नि को साक्षी मानकर जीवन व्यतीत करने की शपथ लेते है और यहां से गृहस्थ जीवन शुरू हो जाता है।

16.अन्त्येष्टि संस्कार :-

यह मनुष्य के जीवन का अन्तिम संस्कार है। जो व्यक्ति के निधन के पश्चात सम्पन्न होता है।
           

92 comments:

  1. बहुत अच्छा सर जी

    ReplyDelete
  2. यह आलेख भारतीय संस्कृति का सुन्दर चित्रण हैं|

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको बहुत बहुत धन्यवाद

      Delete
  3. अनेकता को एकता में आपने बहुत ही अच्छा प्रस्तुत किया है

    ReplyDelete
  4. Very nice sir ji

    ReplyDelete
  5. सभी मित्रों को बहुत बहुत धन्यवाद और आभार

    ReplyDelete
  6. बहुत अच्छा बहुत खूब आपका धन्यवाद जो हमारी संस्कृति से अवगत करवाया

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय श्री आपको बहुत बहुत धन्यवाद और आभार

      Delete
  7. बहुत ही बड़ीया।

    ReplyDelete
  8. बहुत अच्छा सर जी।

    ReplyDelete
  9. यह आलेख बहुत ही अच्छा है।

    ReplyDelete
  10. बहुत अच्छा सर जी।

    ReplyDelete
  11. बहुत अच्छा सर जी।

    ReplyDelete
  12. बहुत ही सुंदर सरल शब्दों में भारतीय संस्कृति का परिचय

    ReplyDelete
  13. बहुत ही अच्छा भारतीय संस्कृति के प्रति आपने जो आलेख लिखा है सरल एवं सहज एवं सुंदर और कम शब्दों में बहुत
    अच्छा लिखा

    ReplyDelete
  14. बहुत अच्छा लिखा है भारतीय संस्कृति का परिचय सर

    ReplyDelete
  15. बहुत ही सुंदर लेक लिखा है सर जी भारतीय संस्कृति

    ReplyDelete
  16. Very detailed and informative Sir... thanks for sharing

    ReplyDelete
  17. भारतीय इतिहास को इतने अच्छे शब्दकोश में व्यक्त करने के लिए धन्यवाद।सर वर्तमान में अपनी परम्परा और संस्कृति एक अच्छे इतिहास का वर्णन करती है

    ReplyDelete
  18. बहुत अच्छा लिखा है,

    ReplyDelete
  19. बहुत सुन्दर लिखा है

    ReplyDelete
  20. आपने भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को सरल शब्दों में चित्रित किया है

    ReplyDelete
  21. आपने भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को सरल शब्दों में चित्रित किया है

    ReplyDelete
  22. भारतीय संस्कृति का बहुत अच्छा वर्णन किया है

    ReplyDelete
  23. भारतीय संस्कृति का बहुत ही सरल शब्दो में चित्रण किया है

    ReplyDelete
  24. बहुत अच्छा सर जी

    ReplyDelete
  25. सभी लेख पढ़ कर कमेंट करने वाले दोस्तों को बहुत बहुत धन्यवाद और आभार

    ReplyDelete
  26. भारतीय संस्कृति के बारे मैं सर आपने एक अद्भुत लेख लिखा है। जिसमें मानव जीवन के जन्म से लेकर के मरण तक के सभी संस्कार और आश्रम का स्वर्ण उल्लेख है।

    ReplyDelete
  27. अति सुदंर आपने इस लेख के माध्यम भारतीय संस्कृति की विशेषताओं से अवगत कराया

    ReplyDelete
  28. श्रीमान आपका लेखन अदभुद है
    आपके बताए गए नियम भारतीय संस्कृति को जीवंत करते है, कृपया इसी तरह से ज्ञान कि प्रकाश माला समाज और देश को देते रहे और आपके ज्ञान और प्रतिष्ठा में होती रहे, हम ईश्वर से ऐसी कामना करते है
    जय श्री योगेश्वर कृष्ण जी

    ReplyDelete
  29. सरल शब्दों में बहुत सुन्दर चित्रण 🙏🙏

    ReplyDelete
  30. गुरु जी आपका लेखन बहुत ही अदभुद है

    ReplyDelete
  31. भारतीय दर्शन सर्वोच्च दर्शन है।भारतीय संस्कृति का यह मूल है।वर्तमान समय में जब वर्तमान पीढ़ी इनसे विमुख होती जा रही है, आपने भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को अपनी पुस्तक में समावेश किया है।निःसंदेह यह सभी के लिए लाभदायक होगी।शुभकामनाओ सहित।

    ReplyDelete
  32. We all are proud of our indian culture.
    Sir your poem are good..
    You really inspire us. ����

    ReplyDelete
  33. बुहत अच्छा प्रस्तुतिकरण

    ReplyDelete
  34. भारतीय संस्कृति विश्व की एक मात्र संस्कृति है जिसमें संस्कार,दया,धर्म के साथ साथ सम्पूर्ण ब्रह्मांड का रहस्य छिपा है इसके बारे में विस्तार से बताकर आपने हम सबको इस सनातन स्वरूप से अवगत कराया।
    इसके लिए आपको आदर स्वरूप सधन्यवाद।🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete
  35. बुहत अच्छा प्रस्तुतिकरण

    ReplyDelete
  36. Mera bharat mahan
    Itna accha lekh likhna ka liya shukriya sir

    ReplyDelete
  37. बहुत ही शानदार प्रस्तुतिकरण

    ReplyDelete
  38. भारतीय संस्कृति की उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  39. I'm proud Firstly my culture and than after my sir (B. S.JI) REALLY PROUD OF YOU SIR
    INDIAN CULTURE IS VERY HERTLY AND
    THOUGHTFULL
    ONCE AGAIN
    मेरे भारत देश की संस्कृति अतिउत्तम और प्राचीनतम संस्कृति है जिसे जितना पढेंगें और देखेंगें उतना ही अंदर से झकझोर करता है

    ReplyDelete
  40. भारतीय संस्कृति की सुन्दर व सारगर्भित जानकारी

    ReplyDelete
  41. Neerendra kumar goyalAugust 12, 2020 at 11:03 PM

    भारतीय संस्कृति की सुन्दर व सारगर्भित जानकारी

    ReplyDelete
  42. Prem चाँदाAugust 12, 2020 at 11:10 PM

    आपने हमारी युवा पीढ़ी जो कि पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्रसित है जिसको हमारी अपनी संस्कृति से अवगत कराया है

    ReplyDelete
  43. भारतीय संस्कृति का बहुत ही सुंदर चित्रण

    ReplyDelete
  44. Gajanand dobwal khedaAugust 12, 2020 at 11:36 PM

    सरल शब्दों में बहुत सुन्दर लेख सर जी

    ReplyDelete
  45. यह आलेख भारतीय संस्कृति का सुन्दर चित्रण हैं|

    ReplyDelete
  46. बहुत ही अच्छा लगा

    ReplyDelete
  47. Bahut hi shandar prastuti Karan

    ReplyDelete
  48. बहुत ही सुंदर संक्षिप्त रूप में भारतीय संस्कृति का आपके द्वारा सारगर्भित चित्रण किया गया💐💐👌👌

    ReplyDelete
  49. आप विलक्षण प्रतिभा के धनी है सर

    ReplyDelete
  50. भारतीय संस्कृति की शानदार प्रस्तुति।

    ReplyDelete


  51. Very good sir ji

    ReplyDelete
  52. हमारी भारतीय संस्कृति विश्व की एक मात्र संस्कृति है जिसमें संस्कार,दया,धर्म के साथ साथ सम्पूर्ण ब्रह्मांड का रहस्य छिपा है इसके बारे में विस्तार से बताकर आपने हम सबको इस सनातन स्वरूप से अवगत कराया।
    सुंदर संक्षिप्त रूप में भारतीय संस्कृति का आपके द्वारा सारगर्भित सुन्दर चित्रण हैं��������������������������������

    ReplyDelete
  53. बहुत अच्छा सर जी

    ReplyDelete
  54. अतिसुन्दर सरजी

    ReplyDelete

Powered by Blogger.