सृजन तो गहरे तल से उठता है - by Bharmal Garg



कविता लिखी नही जाती है 
कविता रची नही जाती है 
कविता बनाई नही जाती है
ऐसा नही कि जब मन किया 
कुछ लिख दे 
जब मन किया कुछ रच दे 
कविता शिल्प से मुक्त है 
अपने आप में उन्मुक्त है 
जहां बंधन हैं 
वहां कविता नही हो सकती 
छंद जब फूट पड़े तो कविता है 
हृदय जब रो पड़े तो कविता है 
ना कवि के चाहने से 
ना पाठक के चाहने से 
ना प्रकाशक के चाहने से 
कविता तो फूट पड़ती है बहाने से 
गहरे तल में अनगिनत शब्द उबल रहे हैं 
कुछ क्षणिक तो कुछ आग बन निकल रहे हैं 
शब्द भी रोज जन्म लेते हैं 
रोज मर जाते हैं 
जो उबल कर पक जाते हैं 
वही विप्लव मचाते हैं 
एकांत में जब कवि विचारों को कूटता है  
तो सृजन रह-रहकर अविरल फूटता है 
काव्य रचा नही जाता है 
बल्कि 
काव्य अदृश्य शक्ति बनकर 
कवि के हृदय में उतरता है 
लिखना 
तेरे मेरे वश में होता तो 
अब तक 
रचनाओं के ढेर लग जाते 
सृजन तो गहरे तल से उठता है 
सृजन तो भावों से जन्म लेता है 
दर्द बनकर शब्दों में ढलता है 
गीत बनकर होठों पर खिलता है 
स्वर बनकर संगीत में बजता है 
सुंदरी का सौंदर्य बन निखरता है 
सृजन तो अंदर से उठता है
 

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