कोरोना काल : उसके बाद - by Lokesh Kumar Upadhyay



था एक युग वो भी 
जब देव असुर एक हुए।
आज फ़िर से मचा कोहराम !
फिर से जरूरत हुई,
देश को,
एकता के सूत्र में पिरोने की,
देश के रखवारो ने किया फिर से आगाज़,
बजायी दुंदुभि ;
और कूद उठे
रण में रणबाँकुरे
फिर क्या था ?
सब की आशाएं टिकी हैं,
देखने को नवनिर्माण !
होगी जीत रणबाकुरों की,
देश की माली हालत फिर से होगी
सशक्त ,,,
फिऱ से दौड़ेगा देश,
प्रगति की पटरी पर।
फ़िर से भारत की माटी
उगलेगी सोना
फिर से मिठाइयों की आएगी महक,
प्रकृति भी होगी सुगन्धित
हँस हँस कर पेड़ भी गले मिलेंगे
फिर से नया युग,
रत्नों को देगा जन्म,
होगा युग परिवर्तन,
होगी मानवता की जीत,
महामारी का होगा अंत ।
आएगा नया सबेरा,
प्रभात किरणों के साथ,
स्कूल फिर से चहक उठेगी
किशोरों की मधुर ध्वनि से!
घरों में बजेगी शहनाई,
रस भरी मिठाई,
गुलाबजामुन का मिज़ाज,
शाही पनीर की सुगंध,
आह!और रसना से टपकती लार,
इसी बीच माथ पे बाँधे मुरेठा,
आँखों में ललक,
देखने को एक झलक,
नवागन्तुक मेहमान की।
आयेगा वो शुभ दिन,
          जब
पायलों की झंकार,
चूड़ियों की खनक
और ....
मिलन की वो 
शुभ रात्रि........

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