कुछ अरमान - by Apka Chuha



कुछ अरमान लिए सड़कों पर भटकता है
बस ख्वाइश तो है दो पहर की ज़िंदगी बसर करना
!
नही चाहता कामयाबी जहां भर की मगर नही चाहता खाली पेट सफर करना
!
लिखी है किस्मत उसकी भी उसने जिस रब ने तुम्हे बनाया है
फिर क्यों अमीरी खुदगर्जी के घमंड में गरीबी पे कहर करना
!
मासूम है बचपन उसका भी जो कभी तुम्हारा हुआ करता था
जरा नरम स्वभाव उन सिसकते लबो पर तरसती निगाहों पे नजर रखना
!
गर दिखे कोई मासूम बचपन भूख से बिलखता हुआ
तो भुलाकर सभी नफरतों को ख्वाईशो की उसकी कदर करना...
!


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