किसान की व्यथा- by Anamika Vaish Aina



भूख गरीबी धूप से व्याकुल देखो कितना बेहाल है
सबका अन्नदाता किसान बेबस लाचार बदहाल है

सूरज से पहले उठ जाता
खून पसीना खूब बहाता
घोर परिश्रम से अन्न उगाये
धरती पर हरियाली लाता
लोगों को भोजन देने वाला भूखा सोये कमाल है
भूख गरीबी धूप से व्याकुल देखो कितना बेहाल है

देख कर मुस्काती सूरत को
क्या समझेगा परेशानी कोई
पल पल ठगा गया है उसको
सक्षम की नीयत हुई हैवानी
कर्ज़ में दबता ही जाता दुःखी कृषक प्रतिसाल है
भूख गरीबी धूप से व्याकुल देखो कितना बेहाल है.



ये सरकारें भी न सुने गुहार
गरीबी में शोषण दे उपहार
यूँ ही न आत्मघाती होते ये
निराश हो मृत्यु करें स्वीकार
कृषक-व्यथा-दशा से किसी को न कोई मलाल है
भूख गरीबी धूप से व्याकुल देखो कितना बेहाल है..

भूख से तड़पे है परिवार
बेटी कुँवारी बैठी है द्वार
लाखों सिलवटें माथ पर
कैसे होगी चिंता निराधार
जरुरतों कैसे पूर्ण करें सबकी तैरता मन नैन यही सवाल है
भूख गरीबी धूप से व्याकुल देखो कितना बेहाल है


No comments

Powered by Blogger.