आओ खुद में ही ढूंढे खुशियों का खजाना - by Sudha Jain
आओ खुद में ही ढूंढे खुशियों का खजाना
एक नारी बेटी ,पत्नी, मां, दादी नानी ,सब की भूमिकाओं को निभाते हुए स्वयं की पहचान को भूल जाती है ।लेकिन एक समय ऐसा आता है ,जब वही रिश्ते अलग-अलग कारणों से दूर होने लगते हैं ,और इसी अकेलेपन मैं मिल जाता है, जीवन में दाखिल होने का मौका ।
जीवन के दोराहे पर खड़ी नारी या तो अकेले रहकर भी जीना नहीं छोड़े ,स्वयं के जीने का बहाना ढूंढे। खुशियों के अनमोल खजाने को सहेजने लगती है ,और कुछ नारियां अवसाद का शिकार होकर अपने जीवन को दुख में डाल देती हैं। विकल्प हमारे पास मौजूद रहते हैं। उदाहरण भी हमारे आसपास मौजूद हैं कि जीवन में जो चीजें हमसे पीछे छूट गई हैं, अगर वह हम उनको वापिस से पालें तो क्या बुराई है?
कई उदाहरण ऐसे हैं जिन्होंने अपने जीवन के उत्तरार्ध में चीजों को करने की कोशिश की, और सफलता भी पाई।
कोशिश करना अलग बात है, सफलता अलग बात है ,लेकिन सबसे बड़ी बात है खुश रहना। जीवन के उत्तरार्ध में सफलता से अधिक मायना खुशी का है, अगर हम अपनी रूचि का कोई काम कर रहे हैं ,नाम ,फेम, आमदनी यह तो बाद की बात है।
सबसे पहले हमारे अंदर आएगा जीने का जज्बा, पुरानी जो चीजें हमसे पीछे छूट गई हैं, उन्हें पाने का यह सबसे अच्छा समय है ।जब तक जीना है ,जब तक सीखना है। हम हमारी खुशियों के लिए किसी पर निर्भर क्यों रहे?
छोटे लम्हों को जीने की कोशिश करें, उनमें खुशियां ढूंढे। सकारात्मक गतिविधियों में व्यस्त रहें ,यही जीने का सही तरीका है। मेरी परिचिता बहन के पति की आकस्मिक मृत्यु हो गई, उस समय उनकी उम्र 58 वर्ष थी। ऐसे समय में पति का साथ छूट छूटना जीवन का बड़ा हर्जाना होता है।
बच्चे दूर थे ऐसे समय में उन बहन ने समाज सेवा करने की सोची। एनजीओ से जुड़ गई और अच्छा लगने लगा ।समय कहां व्यतीत हो जाता है, पता ही नहीं चलता।
मेरी एक परिचिता है, पति का 40 साल का साथ छूट गया ।जीना मुश्किल लगने लगा ऐसे समय में उसे अपने लेखन की याद आई, और वह इस दिशा में सक्रिय हो गई। सक्रिय लेखन करने लगी और स्वयं की किताबें भी छप गई, और लेखन उनका जीने का माध्यम बन गया।
हमारे शौक अकेलेपन को दूर करने में बहुत मददगार होते हैं। महिलाएं परिवार की खुशी को सबसे बड़ी प्राथमिकता मानती है। और इसी खुशी की तलाश में उसका जीवन बीत जाता है। स्वयं के बारे में सोचने या जीने का कभी ध्यान ही नहीं रहता, लेकिन एक महिला का जीवन इससे आगे भी कुछ होता है ।बंद दीवारों के बीच तो जिंदगी नहीं जी जा सकती।
स्त्रियां तो सृजनशील होती हैं। यादें सहेजती हैं, प्यार सहेजती हैं ,वस्तुएं सहेजती हैं। कभी-कभी जीवन इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है कि हमें कुछ करने, खुश रहने की बहुत जरूरत होती है, और वह खुशियों का खजाना हमारे पास ही रहता है ।अतः कितनी भी विषम स्थितियां आ जाए, हमारे अंदर के खुशियों के खजाने की चाबी हमारे पास ही रखना है। हमें अपने आप को कभी भी कमजोर नहीं करना है।
जीवन है, सुख दुख है, संघर्ष है, अकेलापन है, लेकिन इस स्थिति में भी अवसाद में जाने की वजह बजाएं प्रसन्नता को अपनाना है, खुश रहना है, अपने शौक ढूंढना है, शौक को पूरा करना है, सेवा का भाव रखना है, स्वयं को स्वस्थ रखना है। आत्मनिर्भर बनना है, और कभी भी अवसाद ग्रस्त नहीं होना है।
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