मुझे फ़र्क पड़ता है - by Ruhi Singh


मुझे फ़र्क पड़ता है ,

हाँ ! मुझे फ़र्क पड़ता है !

तुम्हारी हर एक बात से ,

जो मुझे हर बार तोड़ती है !

जो मेरे सपने की तरफ़ 

लिए कदमों को रोकती है !

  

मुझे फ़र्क पड़ता है 

जब जब तुम हंसते - हंसते

मुझे, मेरे पहनावे , 

मेरी क़ाबिलियत पर,

सवाल करते हो ,

मुझे फ़र्क पड़ता है ! 


हर उस शख़्स से ,

जो मेरे अपने होने का दम भरता है ,

और फिर मेरे ही फ़ैसलों पे सवाल करता है !

मुझे फ़र्क पड़ता है !


जब भी कोइ मेरी भावनाओं 

को दिखावे का नाम देता है !

मुझे फ़र्क पड़ता है , 

जब मैं बेइंतहा प्यार देती हूँ ,

वो सिर्फ़ उस प्यार का 

दम भरता है ..,

मुझे बहुत फ़र्क पड़ता है !


जब जब किसी को अपना मानती हूँ ,

और वो मुझे ग़ैरों में गिनता है ,

मुझे फ़र्क पड़ता है !


मुझे बहुत फ़र्क पड़ता है 

जब जब लोग मुझसे

मेरी समझ और सरलताओं

को लेकर सवाल करते है !


मुझे फ़र्क पड़ता है ,

और तुम्हें भी पड़ेगा ,

जब तुम खुद को 

मुझमें पाओगे , अपनी 

बातों को खुद पे लाओगे ,

तब तुम्हें भी फ़र्क पड़ेगा  

जैसे मुझे फ़र्क पड़ता है !

          



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