कलयुग का परिणाम - by Kumar Avishek Anand
कलयुग का परिणाम
हाहाकार मची है देखो,
प्रकृति है हारी।
दुनिया मे मची है यारों,
कैसी घोर तबाही।
कोरोना महामारी ने कैसा तांडव मचाया,
घर घर मे है विचित्र कोलाहल छाया।
कितने घर वीरान हुए,
कितने हुए सुनसान।
घट रहा इंसान देखो,
लहक रहा शमशान।
एक हवा का झोंका आया,
मानव को औकात दिखाया।
बड़े बड़े वैज्ञानिक हारे,
डॉक्टर वैद्य भगवान को प्यारे।
प्रकृति ने संदेश दिया जब,
तब अहंकार में थे इंसान।
पेड़ काटकर सड़क बनाया,
और बनाई ऊंचे मकान।
दौलत,सोहरत के खातिर,
भूल गए असली पहचान।
पाप की गठरी भरते गयी,
पुण्य का हो रहा बलिदान।
धीरे-धीरे सरक रहा है,
घर घर से इंसान।
हवा पानी का मूल्य न समझा,
तू अपनी नादानी में।
खरीद रहे हो सांसे अब,
कीमत देकर जवानी में।
जीने की खातिर देखो,
खोल दी पैसों का भंडार।
अबकी बाज़ी पलट गई है,
हो रहा घाटे का व्यापार।
तेज़ गति से समय है बदला,
बदला न इंसान।
कलयुग में ही भुगत रहा है,
कलयुग का परिणाम।
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