यूँ ही नहीं मिली आजादी - by Dr. Vishal Singh 'Vatsalya'
यूँ ही नहीं मिली आजादी
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यूँ ही नहीं मिली आजादी, वीरों ने शीश कटाए थे,
झुके ना वह पल भर भी, दुश्मन मार भगाए थे।
थी कैद में सोने की चिड़िया, हर पल वह तड़पती थी,
आजादी की खातिर, वीरों की बाँह फड़कती थी।
सन सत्तावन की क्रांति में वो बिगुल नाद बजाया था,
तड़प उठा था वो दुश्मन, विजय तिरंगा लहराया था।
झाँसी की रानी के आगे कोई ना दुश्मन ठहरा था,
चाहे दुश्मन ने भाग्य वधू पर लगाया लाख पहरा था।
चन्द्रशेखर आज़ाद ने हँस-हँस अपना बलिदान दिया,
दुश्मन था बेदर्द, जलियांवाला हत्याकांड भी अंजाम दिया।
भाग्य वधू से की थी प्रतिज्ञा, उसे आजाद कराने की,
नेहरू का था सपना, हिंद की दुनिया में अलख जगाने की।
उस हाड़ मास के पुतले ने फिर दुश्मन को झुका दिया,
गाँधी, बापू नाम था उसका दुश्मन को फिर भगा दिया।
मिली फिर ऐसी आजादी हमको, फूले नहीं समाते थे,
भारत माँ के हो गए टुकड़े, हिंद और पाक बताते थे।
मिली अब आजादी तो उसका मोल पहचान लिया,
स्वतंत्रता, समता, न्याय, बंधुता संविधान में यह मान लिया।
आजादी मिली है पर उसे स्वछन्दता नहीं बनने देना होगा,
स्वतंत्रता है स्वविकास, हर किसी से यही कहना होगा।
माँ भारती की उन्नति को, आजादी का मोल पहचानना होगा,
सत्य, अहिंसा पथ पर चलकर, गांधी की बात को मानना होगा।
- डॉ० विशाल सिंह 'वात्सल्य'
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