माँ के नव - रूप - by Swati Saurabh ( Maa Durga Bhakti Kavita )


माँ के नव - रूप


नवरात्रि में मां नव- रूप धरे,

हर रूप के अपने महत्व बड़े।

प्रथम रूप बनी हिमालय पुत्री,

मां कहलाई तुम शैलपुत्री।


हुई मां तुम वृषभ पर आरूढ़,

दाहिने हाथ में धरा त्रिशूल।

मूलाधार चक्र में योगिजन,

यहीं से साधना करते आरंभ।


दूसरे स्वरूप में तप की चारिणी,

कहलाई मां तुम तब ब्रह्मचारिणी।

स्वाधिष्ठान चक्र में साधक का मन,

रूप ज्योतिर्मय फलदायक अनंत।


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अर्धचंद्र मस्तक पर घंटा,

तृतीय रूप कहलाई चंद्रघंटा।

कल्याणकारी, चक्र मनीपुर

स्वर्ण -सा चमके मां का स्वरूप।


चौथे रूप से उत्पन्न ब्रह्मांड का,

अतः कहलाई मां कूष्माण्डा।

साधक के मन में अनाहत चक्र,

मां तेरी उपासना सुगम , श्रेयष्कर।


पांचवे रूप धरी स्कन्द की माता,

मां कहलाई तुम स्कंदमाता।

विशुद्ध चक्र कमल पर आसन

देवी कहलाई तब पद्मासन।


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छठा कात्यायन पुत्री कात्यायनी,

मां यह रूप अमोद्य फलदायिनी।

आज्ञा चक्र अत्यंत महत्वपूर्ण,

अलौकिक तेज युक्त तेरा रूप।


सातवां रूप मां कालरात्रि,

विघ्नविनाशक शुभ - फल दात्री।

सहस्त्रार चक्र खुले सिद्धियों के द्वार,

मां करती तब दुष्टों का विनाश।


महागौरी मां तेरा आंठवा रूप,

भक्तों के कलूष जाते हैं धूल।

सिद्धिदात्री मां की नौवीं शक्ति,

सारी मनोकामनाएं मां पूर्ण करतीं।


Writer:- Swati Saurabh

From:- Bhojpur, Bihar




1 comment:

  1. - यदा यदा ही धर्मस्य
    ग्लानिर्भवति भारत।
    अभ्युत्थानम धर्मस्य
    तदात्मानं सृजयामहं।।

    जब जब इस धरा या सृष्टि में धर्म की ग्लानि होती है, अधर्म का धर्म पर अत्याचार बढ़ने लगता है, पापवृति विकास करने लगता है, तब तब परम सत्ता जागृत होती है और पापियों, दानवों, अत्याचारियों के नाश तथा धर्म के उत्थान और उसकी पुनर्स्थापना हेतु इस धरा पर या सृष्टि में अवतरित होते हैं।
    यह वह समय था जब देवताओं पर दानवों का अत्याचार चरम पर था, पुण्यात्माएं दुरात्माओं के अत्याचार से त्रासित थीं। सर्वत्र त्राहिमाम का वातावरण था।धर्म की अत्यधिक ग्लानि हो रही थी-उसी काल में आदि शक्ति माँ कल्याणी अपने को हिमालय पुत्री के रूप में अवतरित होती हैं। दानवों, अत्याचारियों और दुरात्माओं का संहार करती हैं।इस धरा को ,इस सृष्टि को पाप से मुक्त कर धर्म की पुनर्स्थापना करती हैं।
    श्रद्धेय कवयित्री "स्वाति सौरभ" की यह अनुपम काव्यसृजन इसी तथ्य पर आधारित है। माँ के नौ रूपों तथा प्रत्येक रूपों की आराधना से प्राप्त होने वाली शक्ति का ऐसा अनूठा विवरण सहज से प्राप्त नहीं होता।
    देखिए कवयित्री द्वारा आदि शक्ति माँ का क्रमवार रूप विवरण-
    माँ का पहला रूप-हिमालय से अवतरित होने के कारण शैलपुत्री कहलाई। माँ के इस रूप की अराधना से मूलाधार चक्र (PERINAEAL GLANDS) जागृत हो जाता है। इस चक्र का देवता पशुपति महादेव है। तत्व-पृथ्वी। प्रतीक पशु सात सूडों वाला हाथी है, जो बुद्धि का प्रतीक है। इस चक्र का रंग लाल है-जो शक्ति का प्रतीक है। कर्म सिद्धान्त के अनुसार यह चक्र प्राणी के भावी प्रारब्ध निर्धारित करता है। इसके साकारात्मक गुण हैं-स्फूर्ति, उत्साह,स्थिर देह, मादकता, उच्चबोध और विकास।
    नवरात्री के प्रथम दिन कलश-स्थापना के बाद आदि शक्ति माता शैलपुत्री का स्तवन इस सूत्र मन्त्र से किया जाता है-

    वन्दे वाञ्छितलाभाय
    चंद्र अर्द्धकृत शेखराम।
    वृषारूढां शूलधरां
    शैलपुत्री यशस्विनीम।।

    माता के अन्य आठ रूपों का विश्लेषण विवरण मैं अपनी अगली टिप्पणी में अवश्य करूँगा।तब तक के लिए ऐसी उतकृष्ट काव्यरचना हेतु मैं अपने शुद्ध अंतः स्थल से श्रद्धेय कवयित्री को साधुवाद देता हूँ।
    श्रद्धावनत।

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