जग जननी मांँ वैष्णो देवी - by Abhilasha "Abha" ( Hindi Bhakti Kavita, Maa Durga, Dussehra, Durga Puja)
जग जननी मांँ वैष्णो देवी,
ऊंँचे पहाड़ों पर तुम बसती हो,
नित नित शीश झुकाऊं मैं,
तुम सब की पीड़ा हरती हो।
नैनों से मेरे नीर बहे,
उससे पखारुँ मैं तुम्हारे चरणों को,
कंठ से मेरे स्वर ना निकले,
फिर भी गाऊं मैं तुम्हारे भजनों को।
अंजूरी को अपने दीपक बना कर,
आंँसू मेरे घृत की धारा,
दुख मेरे ज्योति बने हैं,
अब मांँ तेरे आंँचल का सहारा।
ऊंँचे पर्वत पर धाम तेरा,
संकटों से घिरा जीवन है मेरा,
कहीं इसकी सांझ ना हो जाए,
मन का दीपक कहीं बुझ ना जाए।
आई हूँ माँ शरण तिहारे,
कैसे दर्शन पाऊँ तुम्हारे,
रास्ते पर अंधेरा भरा है,
भंवर जाल से जीवन घिरा है।
हे जग जननी देवी माता,
अब मन से मेरे संशय मिटा दो,
जग के अंधियारे को मिटाकर,
नवजीवन का संचार कर दो।
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