भाषा - महत्व और प्रकृति - Vishal Singh Vatsalya
हम समाज में रहने वाले प्राणी हैं और अपनी आत्म अभिव्यक्ति करना हमारी स्वाभाविक इच्छा होती है। हम अपनी बातों को दूसरे से कहने की इच्छा रखते हैं और दूसरों की बात सुनना पसंद करते हैं। इस आत्म अभिव्यक्ति का साधन भाषा है। भाषा शब्द 'भास' धातु से निर्मित है, जिसका तात्पर्य है- "कहना, यह प्रकट करना" अर्थात भाषा वह माध्यम है, जिसके द्वारा हम विचार तथा भावों को व्यक्त करते हैं। ध्वनि, संकेत जैसे माध्यम को भी इसमें शामिल कर लिया जाए तो भाषा का अर्थ अधिक व्यापक हो जाता है।
भाषा का महत्व :-
पंडित सीताराम चतुर्वेदी भाषा के संदर्भ में कहते हैं कि "भाषा के आविर्भाव से सारा मानव संसार गूंगो की विराट बस्ती होने से बच गया है।" अर्थात हम मानव के लिए भाषा का विकास होना आवश्यक था नहीं तो कल्पना कीजिए पशुओं की। भाषा में शब्दों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। आदि काल से लेकर आज तक हम जो ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं, वह शब्दों के माध्यम से ही कर रहे हैं।हम शब्दों के माध्यम से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं। जैसे 'मां मुझे आपसे प्रेम है।' वाक्य में एक बच्चा अपनी मां के प्रति अपनी भावनाओं को प्रदर्शित कर रहा है और शब्द 'प्रेम' वाक्य को मां के प्रति प्रेम को अन्य प्रेम से पृथक करने का भरपूर प्रयास करता है। भाषा में शब्दों की भूमिका अहम होती है। हम किसी व्यक्ति के विषय में जानना चाहते हैं अर्थात उसका व्यक्तित्व देखना चाहते हैं तो उसके द्वारा प्रयुक्त शब्द शैली का अध्ययन कर सकते हैं। कहा भी गया है किसी के ज्ञान का पता करना है, तो देखना चाहिए व्यक्ति की बहस कैसी है और संस्कार मालूम करने हैं, तो उसकी भाषा को देखना चाहिए। वाक्य के संदर्भ में बात करें तो वाक्य कई शब्दों से मिलकर बनता है। वाक्य बता देते हैं कि, अमुक व्यक्ति किस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है। उसकी भावना कैसी होंगी। जैसे "हमें सत्य, अहिंसा का अनुसरण करना चाहिए।" यह वाक्य बताता है, अमुक व्यक्ति गांधीवादी विचारधारा व भावनाओं से प्रेरित है। भाषा के विकास में व्याकरण की महत्वपूर्ण भूमिका देखने को मिलती है। व्याकरण भाषा को शुद्ध व सार्थक करने का प्रयास करती है। यदि भाषा पर व्याकरण के नियम लागू हो तो भाषा में चार चांद लग जाते हैं। व्याकरण का अर्थ ही है- "व्यक्रियन्ते व्युत्पादन्ते शब्दयेन" अर्थात स्वरूप से शब्द सिद्ध हो। महर्षि पाणिनी तो व्याकरण को शब्दों का अनुशासन स्वीकार करते हैं।
1. "भाषा ज्ञान के बिना बौद्धिक विकास, ज्ञान वृद्धि, अभिव्यक्ति, रचनात्मक शक्ति का विकास असंभव है।" (रायवर्न के अनुसार) अर्थात भाषा से व्यक्तिव का विकास होता है। हम किसी बातें के द्वारा कुछ अभिव्यक्ति करते हैं, तो वह वाक्य हमारे विचार, भावनाओं को प्रदर्शित कर रहा होता है। :जैसे "गुरु जी कृप्या कर मुझे इस प्रश्न का उत्तर बताइए।" यहां इस वाक्य में एक छात्र अपने गुरु जी से उत्तर प्राप्ति का जिज्ञासु है अर्थात उसके वाक्य उसे गुरु के प्रति आदर भावना तथा जिज्ञासु होना बोध करा रहा है, जिसकी एक गुरु अपने छात्र से आशा करता है।
2. विचार आदान-प्रदान करने के लिए भाषा एक सशक्त माध्यम है। आज वैश्वीकरण के युग में हम एक दूसरे की भाषा को समझ कर अपना सर्वांगीण विकास कर रहे हैं। एक दूसरे की सभ्यता और संस्कृति को समझने का प्रयास कर रहे हैं। भाषा में सभ्यता और संस्कृति की महक आने लगी है।
3."भाषा केवल बौद्धिक विकास ही नहीं चारित्रिक विकास भी करती है।" (माइकल वेस्ट) अर्थात एक उत्कृष्ट व्यक्तित्व निर्माण करने के साथ-साथ उत्कृष्ट नागरिक होने के लिए आदर्श भाषा का होना भी आवश्यक है। कभी-कभी हम सुसंस्कृत भाषा वाले व्यक्ति को सुनते हैं पर कभी-कभी वही व्यक्ति अभद्र भाषा का प्रयोग कर अपनी छवि खराब कर लेता है। इसी प्रकार एक लोकतांत्रिक देश में किसी नागरिक के द्वारा निरंकुशतंत्र की बातें करना लोकतांत्रिक भावनाओं पर प्रश्न चिन्ह लगा देता है। अतः भाषा व्यक्तित्व का आईना है।
4. राष्ट्रभाषा, राष्ट्रीय एकीकरण स्थापित करती है। भारत जैसे विशाल देश में जहां विभिन्न जाति, धर्म, पंथ और रंग के लोग निवास करते हैं, वहां भाषा एकता स्थापित करती है। संविधान द्वारा प्रदत्त राष्ट्रभाषा एक बहुमूल्य देन है। आज अंग्रेजी एक ऐसी भाषा बन चुकी है जो बहुभाषियों के बीच सूचना आदान-प्रदान और संप्रेषण का माध्यम बन चुकी है।
5. हमारा भारत देश विश्व गुरु की परंपरा में रहा है। विभिन्न गुरुजनों ने अपने ज्ञान से इस भूमि को सींचा है। इसी प्रकार अन्य देश व सभ्यताओं में ज्ञान का अद्भुत खजाना देखने को मिलता है। विभिन्न विद्वानों की बातें, उनके ज्ञान हमे यदिआज प्राप्त हो रही हैं, तो वह इस कारण से कि उनकी पुस्तक या साहित्य, संबंधित भाषा में प्राप्त है। उदाहरण स्वरूप प्लेटो की पुस्तक में सुकरात (सुकरात के कोई पुस्तक नहीं लिखी) को आज तक जीवित रखा है या फिर वाल्मीकि कृत रामायण, तुलसीदास रचित रामचरितमानस या फिर गांधी जी के पत्र अथवा प्राचीन सभ्यताओं से प्राप्त विभिन्न भाषाओं के ताम्रपत्र, शिलालेख, पांडुलिपियों आज भी हमें मानव सभ्यता के विकास में सहायक बनाए हुए हैं तथा
मील का पत्थर साबित हो रहे है। इमर्सन के अनुसार "भाषा एक नगर के समान है, जिसके निर्माण में प्रत्येक मानव ने एक पत्थर रखा है।" क्योंकि भाषा से हम ना केवल ज्ञान को एकत्रित करती जा रहे हैं बल्कि आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित भी करते जा रहे हैं। साथ ही भाषा के द्वारा शब्दों का भंडारण आज विस्तृत होता जा रहा है। वैश्वीकरण ने तो भाषाओं को मिलाजुला कर अनूठा ही स्वरुप प्रदान किया है। एक व्यक्ति बात करते समय विभिन्न भाषाओं का प्रयोग कर लेता है आज हिंदी और इंग्लिश मिलकर हिंग्लिश बन चुकी है।
6. भाषा, सामाजिक प्रेम का भी एक माध्यम है। जब कोई एक भाषा भाषी लोग किसी स्थान पर मिलते हैं, तो उनका एक दूसरे के प्रति लगाव महसूस किया जा सकता है। यह भाव संकुचित दृष्टिकोण हो सकता है, पर सामाजीकरण का सुदृढ साधन भी है।
भाषा एवं उसकी प्रकृति :-
1. मनुष्य और अन्य जीवो की भाषा का मुख्य अंतर विचारों का होना है। मनुष्यों की भाषा विचार प्रधान होती है। जब भाषा विचार युक्त होती है, तो भाषा का महत्व बढ़ जाता है। जैसे देश के किसी राजनेता के द्वारा किसी स्कूल की बाल सभा में सत्य, अहिंसा की भाषा बोलना स्पष्ट करती है कि सम्मुख राजनेता या व्यक्ति गांधी जी के विचारों को प्रदर्शित कर रहा है अथवा उसकी गांधी दर्शन में आस्था है। यदि विचार ना होंगे तो भाषा महत्वहीन हो जाएगी। विचार, ध्वनि की उत्पत्ति के कारण उत्पन्न होते हैं। जैसे किसी भी भाषा का लेखक कोई गीत लिखता है, तो उसके पीछे कोई विचार निहित होते हैं और जब कोई गायक उस गीत को गाता है और श्रोता सुनते हैं तो आनंदित हो जाता हैं। उन्हें लेखक और गायक के विचारों का ज्ञान होता है। अतः विचार भाषा को स्वरूप देकर उसका विकास करते हैं। उदाहरण स्वरूप - सुभाष चंद्र बोस का कहना "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।" जिसने संपूर्ण भारत वासियों को एकता के सूत्र में बांध दिया। इस विचार ने उन्हें विश्वास दिलाया कि भारतवासी, सुभाष चंद्र बोस का साथ देते हैं तो वे उन्हें आजादी दिला कर ही रहेंगे।
2. भाषा अपनी परंपराओं से संबंधित होती है एक भाषा भाषी अपनी भाषा को अपनी भावी पीढ़ी के लिए हस्तान्तरित करता है। जैसे एक मां अपने बच्चे से जिस भाषा में बात करती है वह बच्चा उसी भाषा को दोहराता है। समय के साथ भाषा में थोड़ा बहुत परिवर्तन होता रहता है। भाषा स्वयं को किसी सीमा तक परिवर्तित कर सकती है। वह गतिशील है। एक भाषा भाषी जब दूसरे क्षेत्र में जाता है देशकाल का प्रभाव उसकी भाषा पर पड़ता है। पर संभव हे कि वह अपनी भाषा को पूर्णतः परिवर्तित करना नहीं चाहेगा। परिवर्तन ना हो इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
3. भाषा पर वातावरण का प्रभाव पड़ता है। एक हिंदी भाषी परिवार से संबंधित बालक हिंदी भाषा ही होगा यह आवश्यक नहीं है। यदि उसे किस बचपन से ही तमिल भाषी परिवार में पाला जाए तो वह हिंदी के स्थान पर तमिल भाषी ही बन जाएगा। अर्थात भाषा पर वंश के स्थान पर वातावरण का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। हो सकता है बालक हिंदी सीख कर भी पढ़ाई के लिए या अन्य उद्देश्य के लिए अन्य भाषा क्षेत्र में चला जाए जैसे अंग्रेजी क्षेत्र, तो संभव है उसकी भाषा परिवर्तित हो जाएं।
5. हम लोग एक समाज में रहकर सामाजिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। चूकि समाज में एक वृहद् संस्कृति होती है, एक से अधिक सदस्य होते हैं। अतः भाषा के माध्यम से ही एक सदस्य दूसरे सदस्यों से संबंध स्थापित कर पाता है, अपने विचारों को दूसरे से कह पाता है। प्रेम, स्नेह प्रदर्शित कर पाता है। समाज के सभी लोगों में अंतः क्रिया होती है और वह भाषा से ही संभव है। अतः भाषा एक सामाजिक प्रक्रिया है।
6. किसी भी भाषा को उसके शब्द निर्मित करते हैं। शब्द अनुभूति, विचार, भाव, पदार्थ को प्रतीक रूप में प्रकट करते हैं। प्रतीक स्पर्शग्राह्य, चक्षुग्राह्य तथा श्रोताग्राह्य होते हैं। प्रतीकों को शब्दों के रूप में सुनते ही हमें ज्ञात हो जाता है कि संबंधित व्यक्ति क्या कहना चाहता है। किस भाव को प्रदर्शित करना चाह रहा है। जैसे "राम कहता है, वाह!" अर्थात राम किसी वस्तु को देखकर आनंदित हो सकता है और उसके मुख से सहसा निकलता है वाह! इसी प्रकार सुरेश सीमा से कहता है "मुझे पानी पिला दीजिए" और सीमा समझ जाएगी कि सुरेश को प्यास लगी है तथा वह पानी रुपी पदार्थ मांग रहा है। इसी प्रकार पंडित जवाहरलाल नेहरू का यह कहना कि "हम अपनी ऐसी विदेश नीति स्थापित करेंगे जिससे शांति की स्थापना हो" तथा उनके कदमों पर चलने वाले राजनेता पाकिस्तान के प्रति सहिष्णुता का दृष्टिकोण अपनाते हैं और आशा करते हैं कि पाकिस्तान सहयोग और शान्ति की नीति अपनायेगा तो स्पष्ट है कि हमारे नेता की भाषा आदर्शवादी है और आदर्शवादी विचारधारा के समर्थक हैं।
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