मच्छर का आतंक - by Abhilasha "Abha"
मच्छर का आतंक छाया है,
इसने मुझे बड़ा रुलाया है,
पी पी कर खून मेरा,
शरीर पर मेरे घाव बनाया है।
ना कोई आल आउट काम करें,
ना किसी अगरबत्ती से ये भागे,
हरदम भन-भन करता है,
मेरा खून पीकर मोटा हुआ जाता है।
मच्छरदानी में यह घुस जाए,
पूरे बिस्तर पर मुझे नचाए,
मैं ढूंढती रहूंँ इसे मारने को,
मेरी आंँखों से ओझल हो जाए।
बगीचा हो या कमरा मेरा,
सब जगह इस मच्छर का पहरा,
जाने यह कैसा जीव है,
खून पीकर खून जलाए मेरा।
काट काट कर हम इंसानों को,
फैलाए भयानक बीमारी मलेरिया,
इस के काटने से ही होते हैं,
जानलेवा डेंगू और डायरिया।
गर्मी में जब कभी,
लाइन कट जाता है,
मच्छर का आतंक तो,
चरम सीमा पर पहुंच जाता है
क्या-क्या उपाय नहीं किया,
किस-किस चीज को नहीं जलाया,
अब तो थक गई हूंँ मैं,
थका मुझे देख मच्छर हरषाया।
मैं करूंँ ईश्वर से प्रार्थना,
क्यों बनाया ऐसे जानवर को,
जिसने किया हमारा जीना हराम,
उठा लो प्रभु इसे मेरी यह आराधना।
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