डोली उठाओ अब कहार - by Abhilasha "Abha"


डोली उठाओ अब कहार,

करो मेरे ह्रदय पर प्रहार,

पहुंचा दो अब मुझे तुम,

मेरे मायके से अब ससुराल।


छूटा बचपन बिछड़ा मायका,

अब छूटे सब भाई बहन,

बिछड़े सब रिश्ते नाते,

छूटा मांँ के हाथ का जाएका।


क्यों लड़की का ही भाग्य,

ऐसा लिखा जाता है,

लिया जहांँ जन्मी और पली बढ़ी,

क्यों उस अंँगना को छोड़ना पड़ता है।


सब ने दिया खूब आशीष,

झोली भर भर के मुझे,

ससुराल बन जाए मायका तेरा,

ना याद आए किसी की तुझे।


मांँ रो-रो कर मुझे,

हमेशा ही देती रही सीख,

ना दुखाना बेटी दिल किसी का,

दे दे मुझे इस वादे की भीख।


बिठा दिया जाए भैया ने मुझे,

सजी हुई सी डोली में,

ऐसा लगा जैसे बिछड़ गई मैं,

अपने ही घर की जमीन से।


डोली में बैठकर में,

अब तो आंँसू बहाती हूंँ,

मायके जैसा प्यार मिले ससुराल में,

यह सपना लिए अब मैं विदा लेती हूँ।


Writer:- Abhilasha "Abha"
From:- Patna, Bihar

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