छिपे खजाने - by Dr. Arvind Premchand
दुध में मक्खन है मौजूद
पर दिखे नहीं वो हमको,
दही जमाकर उसे बिलोएँ
परखें अपने दम को...
तब कहीं जाकर के मक्खन
मही पर आकर तैरे,
बिना परिश्रम संभव ना
खुटकों से ऐरे-गैरे !
निकले मक्खन से ही घी
लेकिन पुरा 'तप' कर,
कोई संत नहीं कहलाए
केवल माला जप कर।
मेहनत से होते हैं सिद्ध
न कार्य मनोरथ से ऐसे,
सोते सिंह के मुँह में मृग
घुसता नहीं स्वयं जैसे।
गेहूँ को भी आता बनने
पिसना पड़ता चाकी पर...
नहीं सफलता आती चलकर
ख्वाबों की बैसाखी पर!
Writer:- Dr. Arvind Premchand
From:- Gwalior, M.P. (India)
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