लक्ष्य-पथ - by Swati Saurabh
नजर रखो सिर्फ लक्ष्यदीप पर,
चाहे कितनी भी अन्धकार हो।
घबराना नहीं कभी ठोकर खाकर,
समझो आलोचना ललकार हो।।
जैसे नदियां हमें सिखाती,
अविरल धारा बहती जाती।
रुकती नहीं है मार्ग में तब तक,
जब तक सागर से मिल नहीं जाती ।।
जैसे अर्जुन की नजर थी ,
केवल मछली की आंख पर।
मत्स्य भेदन में हुए सफल तब
केवल एक तीर ही मारकर।
असफलता को औजार बनाकर,
सफलता का अलख जगाकर।
अपनी कमियां खुद सुधारकर,
लक्ष्य की ओर हो जाओ अग्रसर।
वीरों की तरह डटकर ,
अर्जुन जैसा नजर लक्ष्य पर।
पपिहे की तरह संकल्प कर
चलते जाओ लक्ष्य -पथ पर।


अज़ब, अद्भुत, अतिउत्कृष्ट।
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