रोशनी का बहुत अभाव था - by Deepak Aggarwal
रोशनी का बहुत अभाव था
लेकिन उम्मीद का एक दीया उनके पास था
बेशक जलता वो दिन में एक बार था
लेकिन बेचारा दीया भी लाचार था
घर में गरीबी का बसेरा था
जलता हुआ दीया ही उनकी उम्मीदों का सवेरा था
सुबह की भूख शाम को सताती थी
दीया बुझते ही वो भी बुझ जातीं थी
घर में लोगो की संख्या चार थी
उनमे पिता की सेहत बीमार थी
सब्जी बेच वो कुछ कमाता था
घर का पेट तभी भर पाता था
बेटा भी उसका बडा होनहार था
अकेला था फिर भी समझदार था
पिता का, घर की ग्रहस्थी मे हाथ बटाता था
बेचारा घर-घर जाकर किताब बेचकर आता था
लॉक डाउन की मार बडी भारी पडी थी
पिता को घर की मजबूरी ले चल बसी थी
बेटा आज भी दुख से होता रहता दो चार है
सफलता पाने को महनत करता वो बार बार है।
घर की मजबूरी उसे हर पल कुछ राह दिखाती है
वो एक सच्चा भारतीय बने उसकी माँ उसे आशीष दे आती है।
Writer:- Deepak Aggarwal
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