विजय पायलट - by Dr. Saroj
बहुत वर्ष पूर्व काश्मीर की सुन्दर घाटी में विजय नाम का एक विद्यार्थी रहता था। वह बहुधा हिमालय की ऊँची ऊँची चोटियों को देखकर विचार करता, काश वह एक पायलट (विमान चालक) होता तो ऊँची ऊँची उड़ाने भरकर उन्हे पार कर लेता।पर वह यह सोचकर निराश हो जाता कि परीक्षा में तो उसने कभी अच्छे अंक प्राप्त नहीं किये, फिर ये कैसे संभव हो सकता है? तभी उसे ध्यान आया कि उसके घर के पास पर्वत पर एक सिद्ध महापुरुष रहते हैं जिनके आशीर्वाद से लोगों को मनवांछित फल मिलता है। विजय ने सोचा क्यों न महापुरुष के जरिए ईश्वर के दर्शन कर अच्छे अंक प्राप्त पाने का वरदान प्राप्त किया जाए? अगले दिन प्रातः पर्वत की चढ़ाई पूरी करके वह उस महापुरुष के समीप जाकर बोला-"आप मुझे ईश्वर के दर्शन करा दीजिए ताकि मैं उनसे अच्छे अंक प्राप्त करने का वरदान प्राप्त कर सकूं।" महापुरुष ने कहा-"देखो बेटा,यहाँ एक दीया और एक माचिस रखी हुई है। इस दीये को जलाकर पास वाली कोठी में प्रवेश कर जाना वहीं तुम्हें ईश्वर के दर्शन होंगे।" विजय ने खुशी-खुशी दीया जलाना शुरु किया पर यह क्या? वह तिल्ली पर तिल्ली जलाए जा रहा था पर दीया जलने का नाम ही नहीं ले रहा था। महापुरुष को यह देखकर क्रोध आ गया ,वे बोले-"बच्चे! जब इतनी सारी तिल्लियाँ जलाने पर भी तुम दीया नहीं जला पाये तो तुम्हें पहले कम से कम यह देखना चाहिए कि आखिर दीये में क्या गड़बड़ी है?"
विजय ने ध्यान से दीये को देखा तो उसे पता चला कि दीये में पानी भरा हुआ था। उसने पानी गिराकर दीये में तेल भरकर फिर से दीया जलाने की कोशिश की पर फिर भी वह नहीं जला। इस तरह फिर से कईं तिल्लियाँ बर्बाद हो गई। महापुरुष यह सब देखकर फिर उससे बोले-"तुमने पानी निकालकर तेल तो भर दिया पर यह ध्यान नहीं दिया कि दीये के अंदर अभी भी पानी मौजूद है। जब तक तुम पानी पोंछकर नहीं निकालोगे तब तक दीया नहीं जल सकता।।" महापुरुष की बात सुनकर विजय को अपनी मूर्खता पर हैरानी हुई कि वह कितना नासमझ है, जब इस छोटे से काम को ही नहीं कर पा रहा तो पाइलेट क्या खाक बनेगा? उसे अपनी गलती पर लज्जा महसूस होने लगी। उसने महापुरुष से क्षमा माँगी और उनसे कपड़ा लेकर दीये को अच्छी तरह पोंछकर उसमें फिर से तेल भरकर बत्ती को तेल से स्निग्ध करके दीया जलाया, इस बार दीया जला ही नहीं बल्कि अच्छी प्रकार से साफ सफाई होने के कारण रोशनी भी अच्छी देने लगा। विजय प्रसन्न होकर दीया हाथ में लेकर कमरे की ओर बढ़ा। महात्मा जी ने उसे रोकते हुए कहा- "विजय भीतर मत जा। यहीं ठहर। अंदर कोई ईश्वर नहीं बैठा जो तुम्हें परीक्षा में पास होने की शक्ति देगा।" महात्मा जी की बात सुनकर विजय सन्न रह गया। उस महापुरुष ने विजय को समझाते हुए कहा-"बेटा जिस तरह दीये में जब तक पानी भरा रहा तब तक वह नहीं जला पर जब तुमने उसमें पानी की जगह तेल भर दिया तो वह प्रकाशित हो गया ठीक इसी तरह मनुष्य भी एक दीये के समान है जब तक उसमे आलस्य, क्रोध, दीर्घसूत्रता, निद्रा, तंद्रा,कुटिलता जैसे अवगुण विद्यमान रहेंगे तब तक वह सफलता की सीढ़ियों पर कभी नहीं चढ़ पायेगा परन्तु जिस दिन उसने अपने अंदर से ये विकार हटा दिये तो सफलता उसके कदम चूमेगी।" यह बात सुनकर विजय ने महापुरुष जी को धन्यवाद दिया और प्रण किया कि वह आगे से खूब मेहनत करेगा।साल पर साल गुजरते गये। बारह वर्ष बाद वही जेट प्लेन हिमालय की ऊँची ऊँची चोटियों के ऊपर उड़ान भर रहा था जिसका पायलट (विमान चालक) कोई और नहीं विजय ही था। वह उसी जगह से उड़ रहा था जहाँ बैठकर विजय पायलट (विमान चालक) बनने के सपने देखा करता था।
Writer:- Dr. Saroj
From:- Patiala, Punjab (India)
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