कहूँ किसे मैं 'सफलता' - by Ruma Jain


कहूँ किसे मैं 'सफलता' सोंचू बैठ एक कोने में,

प्रश्नों के बौछार लगी दिल- दिमाग के कोने में।

हैं सफलता ऊँची -ऊँची ठोकी गई कोठी में,

या मिल बाँट कर खाई गई सुखी रोटी में।

हैं सफलता द्वार पर खड़ी मोटर की शान में,

या फिर गिरे का हाथ दे उसकी संभाल में।

शायद है सफलता ऊँचे पद और शान में,

या लुट गए जो बचाने देश की आन में।

कहूँ सफलता बृद्धाश्रम खुलवाने में,

या बैठ अपने मात -पिता के संग चहचहाने में।

कहूँ सफलता संगमरमर के मंदिर बनवाने को,

या बैठ किसी पेड़ के नीचे किसी बालक को पढ़ाने को।

सोच सोच मेरा दिमाग चकराया,

पर कोई हल न निकल पाया।

सफलता नापने के सभी के अपने पैमाने थे।

पर मेरी नजर में रोटी बाँटकर खाने व 

मातापिता संग चहचाहने जैसे सफलता के मायने थे। 


Writer:- Ruma Jain

From:- Pune, Maharashtra (India)

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