साहस के प्रतिमान हो - by S.P. Dixit


जीवन में  सफलता हेतु ,द्रुत अश्व सम गतिमान हो।

कभी थको न कभी रुको न,साहस के प्रतिमान हो।।


प्रस्तर हों या शूल पथ पर, होना तुम विचलित नहीं ।

पथ- व्यवधान सम्मुख,भयभीत होना किंचित नहीं।।

हो विहंग-उत्साह-अंतस, साहस, शौर्य से आगे बढ़ो ।

होने दो अंचित लक्ष्य-पथ, निर्भय हिमाद्रि- श्रंग चढ़ो।।


अंत:ज्योंति प्रज्ज्वलित रहे,उर-तिमिर अवसान हो ।

जीवन में सफलता  हेतु, द्रुत अश्व सम गतिमान हो।।


अकंप्य हो अंत:प्रकृति,ये अंतर्नाद कभी न सुप्त हो।

अंत:करण उत्साह-सुरभि,कभी न क्षीण-विलुप्त हो।।

प्रयास हों अकिंचित्कर नहीं, सद्गुणों का उद्भव करो।

पराजय-तम-प्रच्छाया न हो, सर्वदा जय-उत्सव करो।


अकल्प हो कर्तव्यनिष्ठा,दिनकर सम दैदीप्यमान हो।

जीवन में सफलता हेतु, द्रुत- अश्व सम गतिमान हो।।


अंबुरूह विहंसते बंजर-धरा,अंतस लगन-उत्साह हो।

निडर तरिणी रुकती नहीं, कितना ही तीव्र प्रवाह हो।।

वीर श्रम- भय से कभी, निराश,अकर्मण्य  होते  नहीं।

उनको मिलती असफलता, जो शौर्य उर संजोते नहीं ।।


हौसले सजे हों पंख में, दविज सम ऊंची उड़ान हो।

जीवन में सफलता हेतु, द्रुत-अश्व सम गतिमान हो ।।




No comments

Powered by Blogger.