ताज - by Sukhpreet Singh


ये जो हूए है सफल तो न पूछो के कैसे सफलता पाई है

जागे हैं रात रात भर तब जाकर आंखों में नींद पाई है

सफर आसान जमीन से कुर्सी तक यूं ही नहीं होता यहां इसके लिए किसी ने अपनी सारी खुशियां लुटाई है

आज पहुंचा उस मुकाम पर तो लोग कहने लगे

इसने तो हर चीज किस्मत से पाई है

किसी को क्या पता किस्मत चमकाने के लिए 

मैंने अपनी कितनी एड़ियां घिसाई हैं



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तब जाकर मिलता है ताज सफलता का सिर पर 

जब जमीन की धूल मैंने माथे से लगाई है

अब नहीं आरजू आसमां पर घर बनाने की 

मैंने अपनी मां के चरणों में भी दुनिया बसाई है


Writer:- Sukhpreet Singh

From:- Indore, M.P. (India)

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