सेनानी - by Dr. Amrendra Verma
सेनानी
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हमने देखे असली रक्षक
जो सीमा प्रहरी होते हैं।
देश हमारा रहे सुरक्षित
बारूदों में खुद सोते हैं।
और कभी अभिनन्दन बनके
कठिन यातना सहते हैं।
दुश्मन रचता लाखों चालें
पर भेद कभी न कहते हैं।
याद करो पुलवामा हमले
कैसा वह परिवेश था।
हम रोये तुम सब भी रोये
और रोया सारा देश था।
मेंहदी रचे हुए हाथों से
मंगल सूत्र को तोड़ा था।
अमर शहीदी तू बन बैठा
उजड़ा मेरा जोड़ा था।
पत्थर सी पथरीली आँखें
दिल का बोझ बयाँ करती।
चारों ओर शून्य दिखता है
रो रो कर तड़पा करती।
नई सुहागिन के आँसू से
दुःख की धारा बहती है।
देश के रक्षक वीर सिपाही
के कर्तव्यों को कहती है।
पूरा देश साथ में तब था
जब कुछ सैनिक खोये थे।
चिता जलाते देख दुधमुंहे
दृश्य देख के सब रोये थे।
हे सेनानी तुम रक्षक हो
मैं तेरी कविता लिखता हूँ।
तुझ में ही ईश्वर दिखता है
तुम्हें कोटि वन्दन करता हूँ।
- डॉ अमरेन्द्र वर्मा
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