बिन ब्याही विधवा - by Ratna Bapuly


बिन ब्याही विधवा

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हर भारतीय लड़कियों का सपना होता है कि उसका जीवन साथी एक सिपाही हो। उत्सा का भी यही एक सपना था, पर जब उसने अपने सपनों की बात प्रीति को बताई तो वह कहने लगी - "अरे किसी सिपाही से शादी करने के लिए स्मार्ट होना पड़ता है, अँग्रेज़ी में गिट-पिट करना आना चाहिए, सुन्दरता के साथ साथ हाईट भी अच्छी होनी चाहिए।"


उत्सा दर्पण में अपना चेहरा देखती हुई सोचती है कि प्रीति ने जो-जो बात बताई है, क्या उस परिप्रेक्ष्य में उसके अन्दर क्या कमी है? सुन्दरता की प्रतिमूर्ति वह भले ही न हो, पर इतनी बुरी भी वह नहीं दिखती कि कोई उसे पसंद न करे। एम० ए० तक पढ़ी है, स्मार्ट होने में तथा गिटिर-पिटिर अँग्रेज़ी बोलना सीखने में उसे ज्यादा वक्त नही लगेगा। हाँ, जंरा-सी हाईट छोटी है, हील पहनने की प्रैक्टिस करनी पड़ेगी। वह यह सोच हीं रही थी कि उसके बड़े भाई ने आवाज दी - "उत्सा दो कप चाय तो लाना मेरा दोस्त अविरल आया है।"


आई भैया कहकर वह ड्रॉईंग रूम में चाय बनाकर ले गई। भैया के कई दोस्तो को वह जानती है, पर यह एक नया दोस्त अविरल को तो पहली बार देखा है। तभी उसके भाई ने उत्सा का परिचय अविरल से कराते हुए बोला - "देखो उत्सा जिन सिपाहियों की वीरता में तुम अपनी कविता की कॉपी भरती हो न! यह वही है, एक जाँबाज सिपाही। कुछ दिनों की छुट्टी में घर आया था, तो मै इसे यहाँ ले आया। चलो सुनाओ कोई कविता। सिपाही शब्द सुनते ही उत्सा की दिल की धड़कने तेज हो गयी, फिर भी अपनी भावनाओं को संयम करती हुई वह कविता सुनाने लगी।

सैनिको तुम खड़ग हो, खड़ग की हो नुकीली धार, 

शत्रुओं को आने नहीं देते सीमा पार ।

सहकर भी वक्ष पर गोलियों की वार ।

मिटते नहीं देते हो भारत माँ की शान ।

कविता समाप्त होने पर उत्सा के ड्रॉईंग रूम में तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी।

उत्सा एवं उसके भाई परिमल में यूँ तो पाँच वर्ष का अन्तराल  था, परन्तु वह भाई-बहन कम और दोस्त ज्यादा थे, अतः परिमल को उत्सा की पसंद-नापंसद सब पता था, वह अविरल को इसलिए भी लाया था कि दोनों एक दूसरे को देख ले क्योंकि पिता के देहान्त के बाद परिमल के माथे पर ही अपनी बहन की शादी की जिम्मेदारी आ पड़ी थी।


अविरल के जाने के बाद परिमल ने उत्सा से पूछा - "कैसा लगा तुम्हें अविरल ?"

"आप तो मेरी कमजोरी जानते हीं हो भैया, फिर क्या पूछना ?"

बात आई-गई हो गई, अचानक उत्सा ने सुना कारगिल के युद्ध के लिए सभी सैनिकों की छुट्टी रद्द हो गयी है, युद्घ में जाने से पहले अविरल परिमल के पास आया था, यह कहने कि उसे कुछ हो जाए तो उसके माँ का ख्याल रखना, माँ के सिवा मेरा कोई और नहीं है, माँ की चिन्ता मुझे युद्ध के मैदान में विचलित कर देती है, और मै हताश हो जाता हूँ।


तभी उत्सा बोल पड़ी आप निश्चिंत होकर जाईए, मै कल ही आपके घर पहुँच रही हूँ, माँ की देखभाल करने के लिए। यह तो मेरा सौभाग्य होगा कि मै एक सिपाही के जननी की सेवा कर रही हूँ और उत्सा अविरल के घर रहने चली गई। उत्सा पूरे मनोयोग से माँ की सेवा में तत्पर हो गई, जैसे सिपाही लोग अपने भारत माँ की सेवा मे लीन हो जाते हैं। जाते समय उत्सा ने कहा था मेरे लिए तो मेरी भारत माँ भी मेरे प्राणों से प्रिय हैं, मैं आपके आने का इंतजार करूँगी।


युद्घ के दौरान अविरल द्वारा किए गए माँ के फोन को उत्सा ही उठाया करती थी और अविरल से बातें करती थी क्योंकि वृद्धावस्था के कारण उसकी माँ को कम सुनाई पड़ता था। उत्सा के मन के सपने परवान चढ़ रहे थे, जिसमे अविरल का फोन उसकी कल्पनाओं के पंख को रंगीन बना उसे रोजाना नई नवेली दुल्हन की तरह सजा जाती थी, वह तन, मन, धन से अविरल को अपना पति मान चुकी थी। उधर अविरल के मन मे भी उत्सा के प्रति प्रेम की भावनाएँ जागृत हो चली थी, अविरल ने फोन पर ही कहा था - "यदि मुझे कुछ हो जाए तो उत्सा तुम क्या करोगी?" उत्सा का जबाब था - "करूँगी क्या ? एक सच्चे जाँबाज सैनिक की विधवा बन अपना जीवन गुजार दूँगी और क्या ?"


युद्घ ने जोर पकड़ा, सैनिकों ने बड़ी वीरता से इस लड़ाई को लड़ा, पर अविरल का शव जब तिरंगे में लिपटकर घर आया तो उसने अविरल के मृत हाथों से अपनी माँग भर तुरन्त मिटा दी और श्वेत वसन धारण कर एक सिपाही की विधवा बन, जैसा उसने अविरल से वादा किया था, उम्र भर सच्चे प्यार की मिशाल बन जीती रही।


- रत्ना बापुली

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

शिक्षा - एम० ए०, बी० एड०

विभिन्न सम्मानों से सम्मानित

प्रकाशित कृतियाँ - हिन्दी की 4 और अंग्रेजी की 1 पुस्तक प्रकाशित

विभिन्न साझा संग्रह और समाचार पत्रों में भी रचनाएँ प्रकाशित

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