जहाँ चाह है वहाँ राह है - by Dr. Shahida


जहाँ चाह है वहाँ राह है


दस साल बाद मैं फिर मुम्बई आ गया । एक दिन अखबार में मैंने सनराइज़ कम्पनी का प्रचार देखा जो केवल नेत्र विहीन लोगों के लिए था, उस कम्पनी के मालिक का नाम देखकर मैं चौंक गया श्याम कुमार गुप्ता। मुझे लगा मेरा बिछड़ा दोस्त मुझे फिर मिल गया मैं जल्दी जल्दी तैयार होने लगा अपने दोस्त से एक मुद्दत बाद मुलाकात करने के लिए।


कुछ देर बाद मैं अपनी कार से महाबलेश्वर की ओर चला जा रहा था अपने जिगरी दोस्त से मिलने... कुछ देर बाद मैं एक आलीशान बिलडिंग के सामने खड़ा था, रविवार होने के कारण फैक्टरी बंद थी । मैंने गार्ड से आवास का पता पूछा, उसने बताया अंतिम छोर पर जो गेट दिख रहा है साहब वहाँ रहते हैं। मैंने कार पार्किंग में लगाया और लगभग दौड़ता हुआ गेट तक पहुँच गया। गार्ड को विज़िटिंग कार्ड देकर बताया कि मैं तुम्हारे साहब का बहुत पुरान दोस्त हूँ, उनसे मिलना है। वह पहले तो मुझे ध्यान से देखता रहा फिर बोला साहब सनडे को किसी से मिलते नहीं फिर भी आप कह रहे हैं तो आपका कार्ड मैं उनके पास पहुँचा देता हूँ। इतना कहकर पास पड़ी हुई कुर्सी की तरफ बैठने का इशारा करके वो भीतर की ओर चला गया।


अचानक मेरे कानों में अपने दोस्त श्याम की आवाज़ सुनाई दी। वो एक छड़ी के सहारे बाहर की ओर आ रहा था बोला कहाँ हो धरम मैं लपक कर उसके गले लग गया। आँखें नम हो गयीं तभी पीछे से किसी महिला की आवाज़ सुनाई दी कौन आया है। श्याम ने चश्मे के नीचे से आँख साफ़ करते हुए कहा देखो मेरे बचपन का दोस्त मिलने आया है देखो धरम ये तुम्हारी भाभी है रीता। आ चल अन्दर बैठकर इतमिनान से बातें करते हैं। मैंने अभिवादन में हाथ जोड़ लिए और मन मस्तिष्क में अनेको सवाल लिए उनके पीछे-पीछे घर के अन्दर ड्राइंगरूम तक पहुँच गया श्याम ने छड़ी कोने में टिकाई और मेरे गले में हाथ डालते हुए बोला यार तू भी सोच रहा होगा मैं कहाँ से कहाँ पहुँच गया।


इतना कहकर वो बताने लगा कि माँ के इलाज में मैं अंधा तो था ही लाचार हो गया। माँ चली गयी और मैं एक-एक पैसे को परेशान हो गया। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी, मोमबत्ती बनाने और बेचने का इरादा किया, महाबलेश्वर में अंधे लोगों की कार्यशाला में 3 महीने तक ट्रेनिंग ली और जो भी पैसे मेरे पास थे उससे मोम आदि खरीदकर मोमबत्ती बनाया और लोकल मार्केट में बेचने लगा। मोमबत्ती बिकने लगी। धीरे-धीरे 2-3 साल का समय बीत गया अचानक मेरी ज़िन्दगी में तुम्हारी भाभी आ गई। इतने में भाभी की आवाज़ सुनाई दी आप लोगों के लिए रामू चाय लाया है कहाँ की बातें लेकर बैठे हैं। आओ-आओ तुम भी बैठो कहाँ चली गई थी ये मेरा बहुत पुराना दोस्त है, इसे मैं अपनी ज़िंदगी के इतिहास के पन्ने सुना रहा था| हाँ तो घर वालों के विरोध के बावजूद रीता ने मुझसे शादी कर ली और हर कदम पर मेरा साथ दिया। हमने सनराइज़ कम्पनी बनाई और तरह तरह की क्वालिटी मोमबत्ती का प्रोडकशन शुरु किया। हमारे प्रोडट्स की सप्लाई विदेश में भी होने लगी। हमें भगवान ने इज्जत, शोहरत और दौलत सब कुछ दिया। लगता है माँ के आशीर्वाद ने मुझे रीता से मिलाया और उसकी दुआओं से ईश्वर ने ये दिन दिखाया। मुझे आज भी मेरी माँ के वो शब्द याद आते हैं... तो क्या हुआ अगर तुम दुनिया नहीं देख सकते कुछ ऐसा करो कि दुनिया तुम्हें देखे.... इतना कहते कहते उसकी आँखें नम हो गयीं उसने भारी आवाज़ मे कहा अभी जाना मत शाम तक बच्चों से मिलकर जाना। मैं अपने दोस्त के गले लग गया तुम ज़िदगी की बहुत बड़ी मिसाल हो मेरे दोस्त। भाभी जो हम दोनो की बातें ध्यान से सुन रही थी बोली भैया खाना खाकर जाना। इतने दिन बाद आप दोनो मिले हैं लेकिन प्यार वैसा ही है। आज तो सगे भाइयों में भी ये प्यार नहीं दिखाई देता। फिर हम दोनो इधर उधर की बातें करते रहे शाम को बच्चों से मिले आशीर्वाद दिया, रात का खाना खाकर फिर मिलने का वादा किया और मद्धिम ऐक्सलेटर लिए धीरे-धीरे गाड़ी चलाता हुआ घर की तरफ़ लौट रहा था अथाह उत्साह और ऊर्जा के साथ।


- डॉ० शाहिदा

प्रबन्धक

न्यु एन्जिल्स सी.से.स्कूल

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

No comments

Powered by Blogger.