माँ के जैसा नहीं कोई दूजा - by Dr.Shahida


माँ के जैसा नहीं कोई दूजा

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थपकियाँ दे कर वो मुझको सुलाती रही,

लोरियाँ गा कर वो मुझको सुलाती रही।


दूध मुझको शिकम भर पिलाकर के वो,

पालने में हँसहँस के मुझको झुलाती रही।


प्यार से उसने पहले माथे को चूमा‌ हमारे,

फिर जाने क्यों मन ही मन मुस्कुराती रही।


मुझे जन्म देकर उसने जो रिश्ता बनाया,

ज़िन्दगी भर शान से उसको निभाती रही।


सींचकर उसने लहु से जन्म हमको दिया,

गीले में ख़ुद, सूखे में मुझको सुलाती रही।


सबको खाना खिलाकर ही उसने खाया,

घर के हर शख्स को पहले खिलाती रही।


उसके प्यार का कर्ज़ हमपे तो बढ़ता गया,

फ़र्ज़ अपना मगर हर तरह वो निभाती रही।


रात में अकसर मेरे क़रीब आकर वो,

उँगलियों से सर के बालों को सहलाती रही।


माँ के जैसा नहीं कोई दूजा इस संसार में,

मेरे रोम रोम से हमेशा ये आवाज़ आती रही।


- डॉ० शाहिदा

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

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