पढ़ें आनन्द कुमार मित्तल जी की रचनाएँ ( Anand Kumar Mittal )


(1) सैनिक

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हे‌ शूरवीर, हे महाधीर, हे साहस के‌ अनुपम प्रवीर,

तुमसे ही‌ भारत-माता का आँचल रक्षित है प्रलय-वीर।


तुमसे ही संतति भारत की अनुप्राणित होती‌ धर्मवीर,

तुमने ही देश के दुश्मन का सीना पल भर में दिया चीर।


अभ्युदय हुआ जब भारत का, हर बार शहादत दी तुमने,

अक्षुण्ण देश भारत अपना, हर‌ बार ये सिद्ध किया तुमने।


दुश्मन को भारतवासी तो पहले आचार सिखाते हैं,

दुश्मन कृतघ्न हो 'गर तो हम ज़लज़ला बन आ जाते हैं।


अपकार नहीं, प्रतिकार लिया करते‌ हैं देश के दुश्मन से,

अपरदम है संसार सखे, हम‌ यहीं बताया करते हैं।


वो प्रगल्भ समझते हैं ख़ुद को, हम‌ क्षीण-वपु हैं नहीं कोई,

कर्तव्य राह पर चल दुश्मन को अन्तिम सांस हम देते हैं।


हम सैनिक रण-बाँकुरे हैं, अपलक सीमा पर रहते हैं,

प्रवंचना‌ नहीं सीखी हमने, प्रहार सीने पर करते हैं।


हम‌ भारत‌ के सैनिक यारों, सीना हम‌ छलनी कर देंगे,

जो‌ पैर बढ़ेगा दुश्मन का, उस पैर‌ के टुकड़े कर देंगे।


- आनन्द कुमार मित्तल

अलीगढ़, उत्तर प्रदेश


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(2) नील गगन में पतंग

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शिशिर ऋतु बीती जाती है, निकट बसन्त ऋतु आती‌ है,

नील गगन मे ढेर पतंगें हर ओर दिखाई देती हैं।


कहीं लाल, कहीं नीली-पीली मन-मोहक लगतीं सब ही,

मांझा सदा 'बरेली वाला' चहुँ ओर प्रसिद्धि है इसकी।


"ये काटा", "वो काटा" चहुँ दिश‌ पुकार सुनाई देती है,

बच्चों, तरुण और बूढ़ों की आवाज़ सुनामी देती है।


साज श्रंगार कर के नारियाँ घूम रही हैं टोली में,

कोई दे रहा कपड़े,स्वेटर,निर्धन जन की खोली में।


परोपकार भावना दिलों मे आज बहुत गहराई है,

जिसकी रही भावना जैसी, प्रकट दान‌ बन आई है।


मकर संक्रांति का यूँ तो पतंगों से सरोकार नहीं,

रीति है यह बड़ी पुरानी, गुजराती मान्यता रही।


सब प्रदेश वासियों ने अब तो यही रीति अपनाई है,

पतंग, भिन्न-भिन्न आकृतियों की जगह-जगह बन आई हैं। 


मनोरंजन है पतंगें ये तो बालक, वृद्धजनों का भी,

मिलकर सभी पतंग उड़ाते, युवक और युवतियों का भी।


आनन्द कुमार मित्तल

अलीगढ़, उत्तर प्रदेश

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