गुरु अनेकों में एक - by Deepak Sen



गुरु शब्द जिसका वास्तविक अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला,,
गुरु को जानने का पहला पड़ाव,,
हम जब जीवन में आते हैं, तो वहां हमें एकमात्र सहारा हमारी मां नजर आती है, जो हमें गर्भ रूपी अंधकार भरे दलदल से, निकाल कर जीवन रूपी प्रकाश से हमारा परिचय करवाती है।
यहां हमें सांसारिक व्यवस्था से परिचय करवाने वाली एकमात्र हमारा सहारा यानी कि हमारी सर्वप्रथम गुरू के रूप में हमारी मां अपनी भूमिका निभाते हुए हमारा मार्गदर्शन करती है। और उनका यही मार्गदर्शन हम सभी के जीवन में संस्कारों को ग्रहण करने की शिक्षा प्रदान करता है।

गुरु को पहचानने का दूसरा पड़ाव,,
वर्तमान युग में हमारा परिचय गुरु से, विद्यालय में होता है, जहां हमें गुरु शिक्षा संस्कार सामाजिक गतिविधियां व सभी नैतिक शिक्षा से परिपूर्ण कर एक सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक के रुप में हमारा मार्गदर्शन करते हुए हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। या दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं। 
यहां हमें वह सच्चे मार्गदर्शक मिलते हैं, जो हमें संस्कार बचपन में मिले हैं हमारी मां के द्वारा उस नींव को मजबूत बनाने का काम हमारे शिक्षक करते है।
जहां आज के युग में शिक्षकों के माध्यम से ही हम अपने आगे के भविष्य को भी तय कर सकते हैं।यह बिल्कुल वैसा ही काम है जिस तरह मां अपने बच्चे के खाने के बारे में हर रुचि का ध्यान रखती है उसी तरह शिक्षक अपने शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र की विषय की रुचि को अच्छी तरह से जानते है, 
शिक्षकों का यही मार्गदर्शन हमें भविष्य की चुनौतियों से लड़ने के लिए एक वीर योद्धा बनाती है।
गुरु का तीसरा पड़ाव जो हमें अध्यात्म की शिक्षा देता है,,
गुरु बिना ज्ञान नहीं, हम अब जान के तीसरे पड़ाव पर है, हम प्रथम व दूसरे पड़ाव में अपनी मां व शिक्षकों से सांस्कृतिक व भौतिक ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं।
अब हमें एक ऐसे गुरु की आवश्यकता होती है जो हमें अध्यात्म से जोड़े ओर जो हमें ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग बता सके। वास्तविक रुप से हमें  संसारिक भौतिक सभी गतिविधियों से, मुक्त कर या फिर इन्हीं में लिप्त होने के बाद भी उस परम पूजनीय परमेश्वर से जुड़ने का मार्ग बता सके। और उनके बताए हुए रास्ते पर चलकर हम आध्यात्मिक अनुभूति को प्राप्त कर सकें। जिसे हम सामान्य बोलचाल की भाषा में गुरु नाम शब्द से संबोधित करते हैं। 
यही वह गुरु मंत्र है जो हमें ईश्वर के हृदय तक पहुंचने में सहायता प्रदान करता है, और साथ में उस परम परमेश्वर के चरणो में हमें एक छोटा सा कोना प्रदान करने में सफलता भी दिलाता है,

अर्थात गुरु परमेश्वर से भी पहले पूजनीय, और "गुरु अनेकों में एक"


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