बेटी को पराया धन न कहना - by Priyanka Pandey Tripathi
बाबुल के बगिया की चिरैया हूं
एक दिन बिन पंख उड़ जाऊंगी।
बाबुल के घर आंगन को सूना कर
यादों की पोटली संग घर से विदा हो जाऊंगी।
मन व्यथित कर देता ये कैसी रीत जहां की?
बेटी को पराया कर देता ये कैसी प्रीत पिता की?
लाड़ प्यार से पाला पोसा आत्मनिर्भर बनाया
पराया धन कहके पल भर मे पराया कर डाला।
आंखें रोई तो मन भी रोया होगा
मैया कैसे तुमने दिल को समझाया होगा।
मुझे तो प्रथा समझकर निर्वाह दिया
अपनों से पराया करके पराए संग बांध दिया।
बाबा तुम ही बताओ तुम बिन कैसे रह पाऊंगी?
जब क्षण भर को अपनी आंखों से ओझल नही करते थे।
मेरे अरमानों को अब कौन पूरा करेगा?
बेटी को तो अपने घर का मेहमान बना दिया।
बाबा तुम्हारे प्यार को तरसुगी
मैया के आंचल की छांव को तड़पुगी।
बेटी हूं तुम्हारी बस यही चाह है मेरी
बेटी ही कहना न पराया धन कहना कभी।
मन व्यथित कर देता ये कैसी रीत जहां की?
बेटी को पराया कर देता ये कैसी प्रीत पिता की?
बाबुल के बगिया की चिरैया हूं.......
Writer:- Priyanka Pandey Tripathi
From:- Prayagraj, U.P.
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