प्रेम राग - by Vijay Kumar Tiwari "Vishu"
घनघोर घटा जब छा जाये,
तब लता-विटप सब मुस्काए,
मन - मोर मेरा तब झुम उठा,
मेघा बारिश जब कर जाए।।
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रिमझिम-रिमझिम सावन बरसे,
गोरी पिया मिलन बिना तरसे,
मुझे रात अँधेरी डंसती है,
बिरहन नयना निसदिन बरसे।।
जब चाँद मुंडेर पे आता है,
जग को शीतल कर जाता है,
पिया बिरह में तड़पे मीन सदृश,
रह - रहकर दर्द उभरता है ।।
यह निशा डंसे नागिन जैसी ,
यह सेज लगे डायन जैसी,
तन-मन में अनल बिरह की है,
सखियाँ लगती दुश्मन जैसी।।
दिन बीत रहा भारी - भारी ,
दिनकर का कहर भी है भारी,
खग-विहग मुझे कुछ ना भाए,
फीकी लगती दुनिया सारी।।
प्रियतम जब तुम आ जाओगे,
जब प्रेम - पुष्प बरसाओगे,
भर लूंगी अंक तुम्हें प्रियतम,
और प्रेम राग तुम गाओगे।।
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