मेरा बचपन - by Abhilasha "Abha"
बचपन होता है खुशियों का खजाना,
यह तो होता है हर गम से अंजाना,
बोली होती है तोतली इसकी,
गिर गिर कर होता है संभलना।
खल्ली, मिट्टी, चौक का खाना,
बापू से मार मांँ से दुलार पाना,
बात बात पर रूठ जाना,
बारिश की बूंदों में नहाना।
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बापू के कंधे पर चढ़कर,
मेला घूमने जाती थी,
रानी थी मैं पूरे घर की,
बचपन था मेरा सबसे सुंदर।
आई जवानी छूटा बचपन,
खो गए सब गुड्डे और गुड़िया,
जिनका ब्याह मैं रचाती थी,
आज खुद ही बन गई मैं दुल्हनिया।
हर खोजती फिरती हूंँ मैं,
बचपन के वो खेल खिलौने,
संगी साथी सब अब छूटे,
अब तो निपट अकेली हूंँ मैं।
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सोचती हूंँ मैं अब अकेले,
लौट आता क्यों नहीं मेरा बचपन,
वो दिन थे बहुत सुहाने,
मेरा बचपन मेरा बचपन।
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