आशियाना सपनों का - by Hirdesh Verma 'Mahak'
संवेदनाओं की नवल कलियाँ
जब अंतःकरण को स्पर्श करके
कोई रेखाचित्र अंकित करती है,
तब उसका रूप गढ़ा जाता है।
संगमरमर सी रंगत लिए वो
उम्मीदों और आशाओं के
वंदनवारो से सुसज्जित, हर पल
आँखों में विमोहन सा भरता है।
वक्त के थपेड़ो से धूमिल होती अपनी
आभा को देख वो कभी सहम जाता है।
कभी हसरतों के रंग पाकर वो बगैर
किसी अवलंब के शिखर चूम आता है।
यूँ तो अंतर्मन के नजाकती
एहसासों से संवरता रहता है
स्वरूप उसका, मगर जब कोई
यथार्थ का पाहन उससे
टकराता है,तो वो दरक जाता है।
कितनी नींदें उड़ान भरकर
ख्वाबों से मशविरा करती है
और ना जाने कितनी भावनाऐं
अपनी परमिति को छूती है।
तब जाकर कहीं एक,
आशियाना सपनों का सजता है।
Very nice 👌👌👌👌
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