मां... कैसा बेटा हूं मैं?😢 - by Pinki Khandelwal


18 बर्ष का सोहम अपनी मां के साथ एक छोटी सी बस्ती में रहता है पिता की मृत्यु के बाद मां घर की व बाहर के सारे काम अकेले करती थी एक दिन उसकी मां बहुत बीमार थी फिर भी वो चुप हो सारे काम कर रही थी और सोहम को बस अपने सपनों से मतलब था उसकी ऊंची ऊंची ख्वाहिशे उसकी मां कैसे पूरी कर रही है उसको उसका एहसास भी नहीं था।


और एक दिन सोहम जोर से बोला मां-  मेरी चाय कहां है,उफ ये तो ठंडी हो गई, क्या मां दोबारा गर्म कर दो इसे, मां जो थक हार के कुछ समय अपने बेटे के साथ बिताना चाहती थी, लेकिन सोहम को बस अपने सपनों को पूरा करना था, उसने मां की तरफ एक बार भी नहीं देखा,
    मां फिर भी चुप उसकी बातों को सुन
एक दिन उसकी मां के पास कुछ साहूकार अपने पैसे लेने आए और उसकी मां बार बार विनती कर रही थी फिर भी वो न माने,

मां बेटे की तरफ देखती पर बेटा कुछ भी न कहता और जोर से बोला कि मां आप भी.....
   मां अपने आंसू पोछकर अदंर रखें कुछ रूपए लायी और उन साहूकार को दे दिए जो उसने अपनी दवाई के लिए बचाए थे, रूपयों को लाता देख सोहम गुस्से की नजर से मां को देखता है और बोलता है रूपये है फिर भी इतना नाटक,
   आपको अच्छा लगता है क्या ये...
    मां चुप थी... धीरे - धीरे मां की तबीयत बिगडने लगी और एक दिन...
    उसकी मां दुनिया छोड़ कर चली गई.....
    और बहुत से राज अपने पीछे छोड़ दिए।

    बेटा थका-हारा घर पर आया और घर पर भीड़ को देख मन ही मन सोचने लगा फिर आज कोई रूपये लेने आया होगा....
     और पता नहीं मां ने किस किस से उधार लिया है..
     यह कह वह जैसे ही अंदर गया वहां मां को जमीं पर लेटा देख स्तबध रह गया,
     और कुछ बोल न सका.....

     फिर अचानक बोला मां उठो न ये नाटक छोडो देख तेरे सोहम को नयी नौकरी मिल गई, मां उठ न...
     तू यहीं चाहती थी न देख ना मां एक बार...
     मैं कब से तेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहा था इसलिए नाराज हैं न अच्छा लो मां मैं कान पकड़ माफी मांगता हूं..

     अब तो आंखें खोलो मां..... मां यह कह जोर जोर से रोने लगा और खुद को कोसने लगा....
     जब मां मेरे पास आई तो मैंने उन्हें क्यो जाने को कहा?
     काश एक बार उनकी बात सुन लेता....
     फिर उसकी नजर मां के पास रखी एक कागच पर गयी उसने वो कागच जल्दी से उठाया और पढ़ने लगा,
     वो पढ़ उसकी आंखें शर्म से झुक गई।
     मां की चिट्ठी पढ़ वो कुछ बोल ही नहीं पाया....
     वो चुप हो उसे पढ़ रहा था..

लिखा था कि-
   बेटा सोहम अपना ख्याल रखना और मुझे माफ़ करना मैं तेरी ख्वाहिश पूरी न कर सकी मैं तेरा ख्याल अच्छे से नहीं रख पायी....
   बेटा मैंने सदूंक में कुछ रूपये रखें है थोड़ी सी मेरी कमाई है जो मैंने तेरे लिए.....
   बेटा सोहम मुझे माफ़ करना मैं तेरी ख्वाहिश न पूरी कर सकी..

   और मैंने थोड़े से लाडू बनाये है तुझे पसंद है न,
   बचपन में बहुत मचलता था तू है ना... ‌
   और एक स्वटर भी बुना है मैंने हो सके तो पहन लेना बेटा... ‌‌

   बेटा दौड़ कर सदूंक के पास गया और वहां रखे सदूंक को उठाकर जोर जोर से रोने लगा... मां....
   और सोच रहा था मैं कैसा बेटा हूं....
     और चुप बैठा उन लाडू को देखता रहा.....
     और बोला-
     मैं कैसा बेटा हूं...
     जो मां मेरी चिंता में दिन रात मेहनत करती रहती,
     उस मां के आंसू कभी दिखाई नहीं दिए मुझे,
     कभी नहीं पूछा मैंने,
     कि मां कैसी हो तुम,
   क्यो मां....
   मां मैं उस घर का क्या करूं,
   जिसमें तुम मेरे साथ नहीं,
   मां मैं कुछ भी नहीं तुम्हारे बिना,
   आज समझ पाया,
   और यह कह वो भी चला गया बहुत दूर.....

   जिस बेटे के सपने पूरे करने के लिए मां ने अपनी जान गंवा दी आज उस बेटे ने वो मंजिल तो पा ली....
   पर उस मंजिल को पाने की जो वजह थी वो गंवा दी....

   उसने मंजिल तो पा ली पर अपनी दुनिया गंवा दी जो उसकी मां ने उसको दी थी...
   काश समझ पाता वो कि दुनिया में मंजिले बहुत पा लेगा वो पर वो मां नहीं जो उसे छोड़ कर चली गई..
अब यह कहने के सिवा उसके पास कुछ भी शेष नहीं रह गया...
कि मां... कैसा बेटा हूं मैं?



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