हे राष्ट्र के युवाओं जागो - by S P Dixit


हे राष्ट्र के युवाओं जागो, सन्त्रास के सब तोड़ो बंधन ।

तारिणी फंसी मंझधार में, दूर करो जन- जन क्रन्दन ।।


आह भुँखमरी लाचारी का, तिमिर व्याप्त घर- घर है ।

फैल रही हिंसा चरायंध, कानून का न किंचित डर है ।।

पतन-पथ जा रहा समाज, इसे  बचा  सकते हो तुम ।

भारत माता के आंचल में, पुष्प सजा सकते हो तुम ।।


कुछ राग परार्थ के ऐसे छेड़ों, सुप्त वीणा में हो स्पंदन ।

हे राष्ट्र के युवाओं जागो,  सन्त्रास के सब तोड़ो बंधन ।।


प्रशस्त करो उन्नयन पथ,नव दिशा दिखाओ भारत को ।

नित नये-नये अन्वेषण कर,विश्व गुरु बनाओ भारत को।।

नारी हिंसा बाल उत्पीड़न,  अभिशाप  तुम्हें मिटाना है ।

तुममें नव ऊर्जा उत्साह नया,कष्ट, विषाद दूर भागना है।।


उठो आ गया समय अब, दिखाओ जन- जन को दर्पण ।

हे राष्ट्र के युवाओं जागो,  सन्त्रास  के सब तोड़ो बंधन ।।


ये राष्ट्र तुम्हें है निहार रहा, तुमसे अनंत स्वर्ण आशायें हैं ।

कर सकते हो तुम तिरोहित,जितनी जन-जन बाधाएं हैं ।।

दुख से मुरझाए चेहरे पर, आह्लाद  सजा सकते हो  तुम ।

भटक रहे जन -मानस को, दिशा  दिखा सकते  हो तुम ।।


राष्ट्र को तुम समर्पित कर दो,अपना जीवन ये  तन-मन ।

हे राष्ट्र के युवाओं जागो, सन्त्रास  के सब तोड़ो  बंधन ।।




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