समय-यात्रा - by Shashilata Pandey


जो समय के प्रवाह में निकल गया,

पा गया आकांक्षाओ की मंजिलें।

जो समय के पथ पर संभल गया,

कम हो जाती जरा राह की मुश्किलें।


जिसनें समय का मूल्य जितना समझ लिया,

कम होते जायेंगें जिन्दगी के झमेले।

रेत सा समय कब हाँथ से फिसल गया?

जो चाहते है समय को अपनी मुट्ठी में लेले।


जिसनें समय की नही कभी परवाह की,

दुनिया की भीड़ में भी रह जाता अकेले।

न किसी के लिए थमा है ना कभी थमेगा,

छूटे चाहें जमाना या छूट जायें दुनियाँ के मेले।


समय ही दर्द देता और समय ही देता है दवा ,

जो समय से खेलता समय भी उससे खेले।

कभी खुशियों का सफर कभी देता मधुर यादें,

जो मूल्य समझें समय का,समय उसी का होले।


ये समय देता है सारे पाप-पुण्य का हिसाब,

ना ऐसी है कोई कीमत जिससे उसे हम तौल ले।

गुलाम नही समय किसी का देता हर पल का जबाब,

ऐसी नही कोई दौलत समय को जिससें मोल ले।


जिसे अपनें झूठें अहंकार पर गुरुर है,

समय ने उसकों समय से तोड़ा जरुर है।

समय ही आदि और समय ही अनन्त है,

समय ही करता सारे कष्टों का अंत है।


Writer:- Shashilata Pandey

From:- Tikhmpur, U.P. (India)

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