देखते देखते जल गयी फुलझड़ी - by Anand "Amit"
देखते देखते जल गयी फुलझड़ी।
राख खुद के ही तन मल गयी फुलझड़ी।
दीप के साथ मिल खेलती वो रही।
हाथ में हाथ रख कल गयी फुलझड़ी।
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चुप रही और अंधेरे में जलती रही।
सूर्य सा उग के फिर ढल गयी फुलझड़ी।
तन सिकुड़ सा गया, सींकचा भर बची।
बस तुम्हारे लिए गल गयी फुलझड़ी।
साथ जब तक रही, रौशनी थी “अमित”।
था अंधेरा जिसे, छल गयी फुलझड़ी।
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