इक रोज सफलता मिलती है - by Rohini Nandan Mishra
राहों में सूरज उगता है,
राहों में संध्या ढलती है।
धीरे-धीरे जा करके तब
इक रोज सफलता मिलती है।
गलता है हाँड़-मास प्रतिपल
सूरज के भीषण तापों से।
सिहर उठता है रोयाँ-रोयाँ
बर्फीली वायु-चापों से।
वर्षा के प्रबल घातों से
काया जाती है सिकुड़-सिकुड़।
हाथों की बंजर क्यारी में
तब भाग्य की रेख निकलती है।
धीरे-धीरे जा करके तब
इक रोज सफलता मिलती है।
पुरुषारथ के पथ पर चलते
संसार सपन हो जाता है।
सपनों का अंतहीन अम्बर
चुपचाप दफन हो जाता है।
मन वैरागी हो जाता है
तजते-तजते मनहरता को।
जा करके तब शनैः शनैः
मंजिल की खिड़की खुलती है।
धीरे-धीरे जा करके तब
इक रोज सफलता मिलती है।
रिश्तों के सारे तार सभी
ढीले होकर बजने लगते।
पागल, सनकी, अभिमानी कह
दुनिया के जन तजने लगते।
पाँवों के छाले भी फटकर
जब पथ से न भटका पाते।
उस एकनिष्ठ, एकव्रती का
तब चरण विजयश्री धुलती है।
धीरे-धीरे जा करके तब
इक रोज सफलता मिलती है।
Writer:- Rohini Nandan Mishra
From:- Ayah, Gonda, U.P. (India)
Thanks
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