माटी के इंसान - by Nivish Kumar Singh


माटी के इंसान, 

खुद को तु पहचान। 

भरी है जो ऊर्जा तेरे अंदर, 

उसको अब बाहर निकाल। 


नही ऐसा कोई चट्टान, 

जो टूटे न टकराने से। 

मसल कर उन चट्टानो को, 

माटी से तु मिला दे। 


अपने मेहनत के खून पसीने से,

उन चट्टानो को गिला कर दे, 

अब इसमें धान का विरा लगा, 

फिर देख खेत कैसे हरियाली से झूमेगी। 


Writer:- Nivish Kumar Singh

From:- Chausima, Vishali, Bihar  (India)

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