नजर नहीं नजरिया बदलो! - by Dr. Sudha Karnawat
समुंदर की लौटती लहरें
छोड़ जाती है सुनसान तटों पर
खूबसूरत सीप,
बुझते सूर्य की अंतिम किरणें
करें प्रज्ज्वलित दर-दर
अनगिनत दीप,
डूबते चांद की कोख
जमीं पर जन्म देती
रुपहली शबनम को,
फलक से टूटा तारा
इक खुशनुमा पैगाम
क्यूँ लगता हमको?
फर्क है सिर्फ नजरिए का
है 'आशा' छिपी निराशा में
और 'सफलता' असफलता में,
झील के आईने में झाँकता पर्वत
सोच कर हैरान है
की कैसे समा गया वो
इस उथली-सी गहराई में,
ठीक उसी प्रकार -
कुछ कर गुज़रने का जज़्बा हो
तो अन्तर ही क्या मित्रों!
एक अँधेरे कुएँ...
या अथाह खाई में?
Dr. Sudha Karnawat
Jaipur
Rajasthan, India
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