सफलता (सफल सेवा मुक्ति पर लिखी गईं ) - by Jagriti Shukla
वो कॉलेज का ज़माना
लगे पूरा आकाश नाप लूं
आज भी तो कुछ वैसा ही
महसूस कर रही हूँ
पर तब
चाँद सितारे पकड़ने को व्याकुल थी
और आज
बस देख कर ही आनंदित हूँ
ऑफिस का पहला दिन
वो निश्छल, चंचल चाह
सभ्य और सुन्दर दिखने की
पर शुक्र है, रब का
बाज आये इस रोज़ रोज़ के
पहनने, खाने,चलने और बोलने के सलीके से
वो पहली तनख्वाह का खाते में आना
और मेरा उपहारों की लिस्ट बनाना
की छूट ना जाये, कोई प्रिय
फर्क बस इतना है
तब देने के लिए भरे थे हाथ
आज पा कर, भी खाली हैं
क़दम एक निश्चित राह के आदि थे
अब इधर उधर कहीं भी पड़ें
अब कोई बाध्यता नहीं
यूँ ही अनजाने से नशे में
अनंत मिलन को निर्बाध बढ़ रही हूँ।
Writer:- Jagriti Shukla
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