सफलता का विहंगम दृश्य - by Manu Pratap Singh Shekhawat
सफलता का विहंगम दृश्य,
विजय जैसे चमत्कार नहीं।
नैराश्य विहीन उत्सुक पंथी,
अजेयता जैसा आकार नहीँ।।
जुझारू शत्रु की बिखरी सत्ता,
करते स्वीकार अधीनता।
समक्ष अधिनायक के चरणों पर,,
करती आत्मसमर्पण कठिनता।।
उत्कर्ष से पराकाष्ठा टूटी,
मन-स्वजन होते पुलकित।
रचित महाकाव्य के गायन से,
ईर्ष्यालु जगत होता विस्मित।।
नहीँ छुटा ऐसा कोना,
जहां सफलता का हाहाकार नहीं।
अजेयता का विहंगम दृश्य,
विजय जैसे चमत्कार नहीं।
Writer:- Manu Pratap Singh Shekhawat
From:- Jaipur, Rajasthan
बहुत सुंदर कविता
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