बिना गिरे न बनता कोई झरना - by Vijay Kumar Parashar
टूटकर संभलना,गिरकर उठना
दुबारा से अपने लक्ष्य में जुटना
ऐसे होता सफलता-सीढ़ी चढ़ना
बिना गिरे न बनता कोई झरना
आंसूओ से प्यास पूरी करनेवाले,
पाते जग में कामयाबी का तना
बिना गिरे न बनता कोई झरना
श्रम से बनता नभ पे घर अपना
शूल को बनाते है जो लोग फूल
वही खिलाते है,दुनिया मे गुल
दर्द सहने के बाद सजती हिना
बिना कर्म न पाता कोई नगीना
बिना गिरे न बनता कोई झरना
बिना श्रम न बजती भाग्य वीणा
सफल वही होता,साखी जग में
जो सँघर्ष करता अपने जीवन में
कामयाबी आफताब वो बनता
जिसके पास होता चांदनी-तना
Writer:- Vijay Kumar Parashar
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