हर बार नयी हार - by Pinki Khandelwal


हर बार नयी हार,

मिल रही मुझे,

नहीं होगी अब मुझसे मेहनत,

हार गया मैं अब,

नहीं लिखी सफलता मेरी किस्मत में,

तभी तो हार जाता हूं,

हर बार,

आखिर क्यों होता है,

हर बार ऐसा,


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   इतने में आवाज आई -


मेहनत करें बिना,

हार मान ली तूने,

देख जरा ध्यान से,

असफलता में भी,

छुपी है सफलता,

तू हार कर,

कुछ सीख रहा है,

और किस्मत पर दोष,

लगा रहा है।



मैं चुप बातों को सुन बोला-


  हां शायद,

  गलत था मैं,

  हर हार मैं,

  छिपी है एक,

  नयी सफलता।




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