थक हारकर जो बैठ गए - by Rupali Singh


थक हारकर जो बैठ गए 

तो क्या खाक मंजिल पाओगे

उठ कर साहस भर जो बढ़ चले 

तो निश्चित मंजिल पा जाओगे। 


बंद अंख से देखे सपने 

कब पूरे होते हैं , 

खुली आंख से देखे सपने 

सोने नही देते हैं।

इस स्वपन अंतर को जो

तुम समझ सके तो 

निश्चित मंजिल पा जाओगे। 


इत उत डोल रहे चित से

तुम क्या लगी लगाओगे 

ठान लो दिल मैं जो ज़िद तो 

निश्चित मंजिल पा जाओगे। 


हार न मानूँगा डटा रहूंगा 

मंजिल को पाकर ही दम लूंगा 

जो ऐसी अलख दिल मे जगाओगे  

तो तूम निश्चित मंजिल पाजाओगे।


महान हस्तियो ने ऐसे ही नही इतिहास गढा 

उन्होंने पथ कठीन दुर्गम रास्तो को था चुना 

उनके पद चिन्हो पर जो तुम चल पाओगे 

तो निष्चित मंजिल पा जाओगे।


Writer:- Rupali Singh

From:- Bareilly, U.P. (India)

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