आगे भोर सुनहरा है - by Sharad Chandra
आगे भोर सुनहरा है
कालचक्र अब थम गया है
रुधिर रंगों मे जम गया है
भय की कलुषित छाया में
जीवनचक्र सहम गया है
समय नहीं था जिस जीवन मे
आज घरों में ठहरा है
आशा की ज्योति नहीं दिखती है
मन मे तिमिर गहरा है!
मन्दिर मस्जिद बंद पड़े है
अल्लाह ईश्वर मूक खड़े है
रोज़ी रोटी के लाले है
कारख़ानों पे ताले जड़ें है
सड़क मुहल्ले बाज़ारों में
सन्नाटे का पहरा है
आशा की ज्योति नहीं दिखती है
मन मे तिमिर गहरा है!
अस्पतालों मे भीड़ बड़ी है
प्राणवायु की होड पड़ी है
साँसों का बाज़ार गर्म है
व्यवस्था एकदम गली सड़ी है
चीख पुकार नहीं सुनती
से सिस्टम बिलकुल बहरा है
आशा की ज्योति नहीं दिखती है
मन मे तिमिर गहरा है!
मानव बेबस, लाचार पड़ा है
सबके सिर पर काल खड़ा है
प्राणवायु तन से हर कर के
सूक्ष्म मारक विकराल अडा है
उठो पार्थ, गांडीव उठाओ,
करो ध्वस्त ध्वज जो फहरा है
आशा की ज्योति नहीं बुझती
आगे भोर सुनहरा है!


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