रामावतार - by Bhashkar Budakoti "Nirjhar"
रामावतार
त्रेता में जब बढ़ गया, पाप झूठ व्यभिचार ।
मनुज रूप धर ईश ने, लिया राम अवतार ।।1।।
हुआ राम वनवास जब, था विधना का हाथ ।
जाते तब सौमित्र भी, जनक सुता के साथ ।।
वनवासी के भेष में, चले राम वनवास ।
जनता सारी रो रही, दशरथ हुए उदास ।।
बढ़े असुर करते रहे, जन-जन का संहार ।
मनुज रूप धर ईश ने, लिया राम अवतार ।।2।।
खर दूषण मारे सभी, बँधी जगत में आस ।
सत्य अहिंसा धर्म पर, करें लोग विश्वास ।।
सीता को हर ले गया, रावण का अभिमान ।
नहीं राम की शक्ति का, था रावण को भान ।।
किया धरा भयहीन तब, रावण को जब मार ।
मनुज रूप धर ईश ने, लिया राम अवतार ।।3।।
जन जीवन सुख के लिए, किया राम ने त्याग ।
डरे हुए नर नार को, दिया नया अनुराग ।।
सुख की करे न कामना, करे काम निष्काम ।
परहित कार्यों के लिए, वन-वन में थे राम ।।
पाप मुक्त कर विश्व को, किया प्रेम संचार ।
मनुज रूप धर ईश ने, लिया राम अवतार ।।4।।


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