हमारा देश है न्यारा - by Vijay Kumar Tiwari "Vishu"
हमारा देश है न्यारा
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हमारा देश है न्यारा , हमें जाँ से भी है प्यारा ,
हमारी शान है जग में,नहीं जग से कभी हारा,
विविध भाषा विविध बोली अनेकों भेषभूषा है,
विविध संस्कृति विचारों से सजा ये देश है न्यारा।।
कहीं बहती है नित गंगा कहीं यमुना की धारा है,
कहीं पहरा हिमालय का कहीं दिलकश नजारा है,
कहीं सागर चरण धोता हमारे देश का हरपल,
कहीं भँवरे का गुनगुन है कहीं बादल अवारा है।।
कहीं लोहड़ी कहीं पोंगल कहीं बिहू मनाते हैं,
भरे ऊर्जा जो तन-मन में विविध त्योहार आते हैं,
कहीं उल्लास ईदी का मुहर्रम का जो मातम हो ,
बरसते रंग फागुन में विविधता को बताते हैं।।
बना गणतंत्र यह जबसे लिया संकल्प ये तबसे,
दिया अधिकार ये मौलिक किया उत्थान ये तबसे,
रचा इतिहास है हमने बहाया जब लहू अपना,
अखण्डता संघ शक्ति का किया उद्घोषक है तबसे।।
कहीं लक्ष्मी की तलवारों ने खेली खून की होली ,
कटे नरमुण्ड के मुख ने भारत माँ की जय बोली,
कहीं तात्या कहीं टीपू बहा दी खून की नदियाँ,
आँग्ल थर्रा उठे लखकर समर सेना भी जय बोली।।
कहीं आजाद की गोली ढहाती जुल्म दुश्मन पर,
भगत बिस्मिल सभी मिलके गिराते गाज थे अरि पर,
वो दिन कैसे भला भूलें जलियांवाले जनरल को,
बही थी रक्त की सरिता चली गोली निहत्थों पर ।।
करो या फिर मरो प्यारे ये नारा याद तो होगा ,
आजादी खून के बदले का नारा याद तो होगा,
विदेशी बस्तु को फूँका स्वदेशी आन्दोलन में ,
कहीं गाँधी का सत्याग्रह वो डाण्डी याद तो होगा ।।
वो सैंतालीस की आजादी लिया था देश अँगड़ाई,
गुलामी से छुटा दामन कली हर फूल मुस्काई,
जनवरी तिथि वो छब्बीस का पूरा हो गया सपना,
नया गणतंत्र था पाया नई दुनिया थी मिल पाई।।
- विजय कुमार तिवारी "विशु"
गोरखपुर, राजस्थान
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