देशधर्म - by Arun Chakrawarti
देशधर्म
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माँ मुझे आशीष दो मैं देशधर्म को निभाऊँगा।
करके प्राण न्यौछावर देश की आन बचाऊँगा।
अपने लहू से इस धरा पे इंकलाब लिख जाऊँगा।
माँ मुझे आशीष दो, मैं देशधर्म को निभाऊँगा।
देश की हिमालय चोटी पर तिरंगा मैं फहराऊँगा।
करूँगा दुश्मनों का अंत तभी घर वापस आऊँगा।
सौभाग्य ये मेरा होगा देश पर कुर्बान हो जाऊँगा।
माँ मुझे आशीष दो, मैं देश धर्म को निभाऊँगा।
हम हैं वतन के रखवाले,साबित कर दिखलाऊँगा।
भारत माँ की गोदी में मैं सदा के लिए सो जाऊँगा।
जाते जाते माँ तेरा सिर गर्व से ऊँचा कर जाऊँगा।
माँ मुझे आशीष दो, मैं देशधर्म को निभाऊँगा।
जन्मभूमि की रक्षा में अपना तन मन लगाऊँगा।
होकर शहीद मैं देश का नाम अमर कर जाऊँगा।
देश की सेवा में मिटकर अमर शहीद कहलाऊँगा।
माँ मुझे आशीष दो, मैं देशधर्म को निभाऊँगा।
- अरुण चक्रवर्ती
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