हे वीर - by Ashish Dwivedi Samdariya
हे वीर
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नमन है वीर शहीदों को,
जिन्होंने माटी का कर्ज़ चुकाया है।
शहीद होकर भी अमर रहे,
धरती माँ ने इन्हे बुलाया है।
हे वीर माँ के शुर वीर,
जीना तुमसे ही सीखा है।
56 इंच की असली छाती,
मैंने तुझमे ही देखा है।
मोह नहीं जवानी का,
तूने गोरों से लोहा मनवाया है।
गोरों के छक्के छूटे,
जब देश से मोह लगाया है।
सूर्य जैसा तेज तुझमे,
तुम नमन के लायक हो।
जो कर दिखाया रण भूमि में,
तुम वंदन के लायक हो।
पुरे देश में गूँज रही,
इंकलाब की साँस है।
अंत समय में वीर बोला,
आजादी की आस है।
वीर नहीं चूकते, दुश्मनों को झुकाने में,
दुश्मनों का चीर के सीना आगे बढ़ जाने में।
तू ही है वो वीर जो,
भारत माँ का परचम लहराएगा।
हराने को ठान कर,तू आगे बढ़ जाएगा,
तुझमें ही तो तेज़ है, लक्ष्य पाने का भेद है।
एक बार तय कर लिया,
तो पिछे ना हटे क़दम,
ना रूकें क़दम,
आगे बढ़ने से
- आशीष द्विवेदी समदरिया
शहडोल, मध्य प्रदेश
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