हे मातृभूमि - by Dr. Madhusudan Tiwari


हे मातृभूमि

-

हे मातृभूमि वंदन करते, युग युग से गहरा नाता है।

ग्रंथों में सजा तेरा वैभव, पढ़ने में मन को भाता है।।


सतयुग त्रेता द्वापर युग में, अवतरित हुए प्रभु तारण को।

ऋषि मुनियों के जप तप से, प्रसंग लिखें हैं पारण को।।


गाथाओं से बहु ग्रन्थ सजे, संस्कृति की माला गुथी हुई।

अभिमन्त्रित शब्दों का सागर, तत्व ज्ञान से मथी हुई।।


दनुज दल के उत्पीड़न से, जन जन पर प्रहार किये।

देवों की भृकुटी भारी थी, उन दुष्टों का सन्हार किये।।


भारत के सपूतों सजग आज, चटृानों सा उनका जज्बा है।

अंदर बाहर के दुश्मन सुन ले, चोकस पहरे का कब्ज़ा है।।


चुन चुन कर मारे जाएँगे, गद्दारों के उन कुनबे को।

आँसू भी ना बहा पाएँगे, उनके अपने भी सुनबे को।।


- डॉ मधुसूदन तिवारी

मंडला, मध्य प्रदेश

No comments

Powered by Blogger.